आगरा: दादी का लाडला था, दादी के साथ चला गया। अब कौन रैकेट मांगेगा। गोलू अपनी मम्मी के पास लौट आ। रोक लो मेरे बेटे को। अथर्व के पापा, मेरा बेटा ले आओ। मेरी मम्मी कहां चली गईं। पूरा जीवन संघर्ष करती रहीं। यह चीत्कार थी, उस मां की जिसने अपना लाडला खो दिया। उस बहू की जो अपनी सास की नक्शे कदम पर चल अपनी परिवार को संभाल रही थी। सेक्टर पांच में जैसे ही दो अर्थियां एक साथ उठीं, हर आंख नम थी। कॉलोनी वाले रो रहे थे। अथर्व के दोस्त उसे याद कर रहे थे। घर के पुरुष आंखों में आंसू लिए अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे।
रोज जाती थीं लेने
गुरुद्वारा गुरु का ताल पर एक्सीडेंट में दादी-पोता का भी निधन हुआ है। दादी रेखा शर्मा का लाडला था अथर्व। पिता योगेंद्र शर्मा व मां कुमकुम शर्मा से ज्यादा अपनी दादी के साथ रहता था। अपनी हर जिद दादी से मनवाता था। पिकनिक पर जाना हो या कोई खिलौना चाहिए हो, हर इच्छा दादी से पूरी करवाता था। परिवार का नया घर रामबाग में बन रहा है। इसी कारण अथर्व का एडमिशन पास के ही स्कूल में करा दिया था। सोचा था कि जल्द ही शिफ्ट होना है, आदत पड़ जाएगी। पिता योगेंद्र रोज स्कूल छोड़ने जाते थे। दादी रेखा शर्मा रोज अपने पोते को स्कूल लेने जाती थीं। शनिवार को भी रोज की तरह अपने पोते को स्कूल से लेकर आ रही थीं। जब यह एक्सीडेंट हुआ। बताया जा रहा है कि अथर्व रेखा शर्मा की गोदी में बैठा हुआ था। ऑटो में से रेखा शर्मा का बैग भी मिला था, जिसमें से कोट, स्वेटर और स्कूल का आईडेंटिटी कार्ड मिला था।
फाइनेंस कंपनी में करते हैं पिता
अथर्व के पिता योगेंद्र शर्मा फाइनेंस कंपनी में काम करते हैं। शनिवार को भी उन्होंने अपने बेटे को सुबह छोड़ा था। उनकी लगभग डेढ़ साल की बेटी भी है। एक्सीडेंट की सूचना के बाद वो चुप हो गए हैं। अपनी पत्नी को ढांढस बंधाते वे आंखों से आंसू पोंछ लेते और बेटे और मां की अंतिम यात्रा की तैयारी में लग जाते।
बहुत मेहनत करती थी रेखा
कॉलोनी में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि रेखा शर्मा बहुत मेहनत करती थीं। पूरे परिवार को संभालने के साथ ही अपने पोते की पूरी जिम्मेदारी संभालती थीं। रोज घर के काम करने के बाद पोते को लेने स्कूल जाती थीं। स्कूल से पोते को लाकर घर पर गाय का दूध दोहती थीं। शाम को कॉलोनी की महिलाओं से भी मिलती थीं। महिलाओं ने बताया कि वे बहुत ही सरल थीं। अथर्व के बारे में सभी महिलाओं का कहना था कि कॉलोनी का सबसे प्यारा बच्चा था। आते-जाते हर महिला को नमस्ते करता था।
हमारा बहुत अच्छा दोस्त था अथर्व
कॉलोनी में रहने वाले अथर्व के दोस्त वंथ और अंश परेशान हैं। वंश तो बार-बार घर के पास आकर देख रहा था। अंश अथर्व के घर के ठीक सामने रहता है। वो घर से बाहर ही नहीं आ रहा था। शनिवार रात को दोनों बच्चों को पता चला तो दोनों शॉक में चले गए। वंश हिम्मत करके अथर्व के घर के पास आया है। उसने बताया कि रोज वो साइकिल चलाते थे। हालांकि अथर्व घर से बाहर कम ही निकलता था। अथर्व स्केटिंग भी करता था और बहुत मस्ती करता था। वंश बोला- वो चला गया। पर अब रोने से वापस नहीं आएगा।
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