इतना आसान भी नहीं होता VEGAN लाइफस्टाइल जीना

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VEGAN लाइफस्टाइल का एकमात्र लक्ष्य होता है जानवरों के साथ किसी तरह का उत्पीड़न ना हो. एक VEGAN व्यक्ति के खाने की प्लेट में मीट, मुर्गा, मछली, दुग्ध पदार्थ, अंडे और शहद कुछ नहीं होता लेकिन VEGAN होना सिर्फ़ खाने से ही जुड़ा नहीं है. इसका दायरा गहनों और कपड़ों तक पहुंच चुका है. VEGAN लोग लेदर, ऊन और मोती भी नहीं पहनते.
अब आप समझ ही गए होंगे कि VEGAN लाइफस्टाइल जीना इतना आसान भी नहीं होता, इसमें जो खाने की चीज़ें होती हैं, उनकी कीमतें बहुत ज़्यादा होती हैं. फिर भी लोग तेज़ी से VEGAN लाइफस्टाइल अपना रहे हैं.
अमरीका में साल 2014 से 2017 के बीच VEGAN लोगों के आंकड़ों में 600 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि ब्रिटेन में बीते एक दशक में यह आंकड़ा 400 प्रतिशत है.
अब कई कंपनियां भी वीगन स्पेशल खाना ऑफ़र करने लगी हैं. जैसे मैकडोनल्ड ने मैकवीगन बर्गर ऑफ़र किया है. 1 नवंबर को वर्ल्ड वीगन डे भी मनाया जाता है, ऐसे में वीगन लोगों की ज़िंदगी से जुड़े ये पांच अहम फ़ैक्ट जानना ज़रूरी है.
1.स्वास्थ्य पर असर
ब्रिटेन में हाल ही में हुए एक सर्वे से पता चला कि लगभग 50 प्रतिशत लोगों ने स्वास्थ्य कारणों से मीट खाना बंद कर दिया. कुछ स्टडी में यह बताया गया है कि रेड मीट (बीफ़ और भेड़) और प्रोसेस्ड मीट (सॉसेज) का अधिक सेवन करने से कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या वीगन लोग सच में स्वस्थ होते हैं? कुछ धारणाएं हैं कि वीगन डाइट का लंबे समय के बाद फ़ायदा मिलता है.
मांसाहारी, शाकाहारी और वीगन लोगों के स्वास्थ पर हुई रिसर्च बताती है कि सिर्फ पौधों पर निर्भर रहने वाले लोगों को कुछ दिक़्क़तों का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि वीगन लोगों को कैंसर का ख़तरा कम हो जाता है. वीगन लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरुक भी समझे जाते हैं.
वहीं शाकाहारी खाने में अगर स्वास्थ्य का ध्यान नहीं दिया जाता है तो उसमें विटामिन डी, विटामिन बी12 और आयोडीन की कमी होने का डर बना रहता है.
2. पर्यायवरण पर असर
भले ही वीगन लोगों की तादाद बढ़ रही हो लेकिन इसके साथ ही दुनियाभर में मीट खाने वाले लोगों की संख्या में भी इज़ाफ़ा हो रहा है. चीन और भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों में मीट खाने वालों की संख्या बढ़ रही है लेकिन मौजूदा वक़्त में जिस तरह से मीट का उत्पादन होता है उससे पर्यायवरण को बहुत नुकसान होने का ख़तरा रहता है.
साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट में बताया गया था कि ग्रीनहाउस गैसों का 14.5 प्रतिशत उत्सर्जन पशुधन उत्पादन के ज़रिए होता है. यह आंकड़ा कार, ट्रेन, जहाज़ और एयरक्राफ्ट से होने वाले उत्सर्जन के बराबर ही है.
वीगन एसोसिएशन की तरफ़ से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक़ अभी धरती की कुल आबादी 700 करोड़ है. जिसमें से 55 से 95 करोड़ लोग शाकाहारी या वीगन हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक़ साल 2050 तक विश्व की जनसंख्या 980 करोड़ तक पहुंच जाएगी, तब हमें मौजूदा वक़्त से 70 प्रतिशत अधिक खाने का उत्पादन करना होगा. वीगन लोगों का कहना है कि खाने के संबंध में लोगों को अधिक ज़िम्मेदार और जागरुक होना होगा.
3. वीगन का बढ़ता व्यापार
वीगनॉरी, ब्रिटेन की एक चैरिटी संस्था है जो लोगों को वीगन बनने के लिए प्रेरित करती है. इनका कहना है कि पांच साल पहले जब उन्होंने यह चैरिटी शुरू की थी तब से अब तक हर साल वीगन लोगों की संख्या दोगुनी होती जा रही है. उन्होंने बताया कि साल 2019 में 190 देशों में ढाई लाख लोगों ने वीगन बनने पर सहमति जताई है.
इसके साथ ही वीगन से जुड़ा बाज़ार भी तेज़ी से बढ़ रहा है. अमरीका में मीट-फ्री खाने की मांग दस गुना ज़्यादा हो गई है. सोशल मीडिया पर लोगों से वीगन बनने के लिए कहा जाता है, इसमें कई सेलिब्रिटी भी शामिल होती हैं. अकेले इंस्टाग्राम में वीगन से जुड़े क़रीब 10 करोड़ पोस्ट हैं. वीगन पनीर बनाने वाली कंपनियों की लागत साल 2020 तक 400 करोड़ डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
इतना ही नहीं, खाने से जुड़ी बड़ी-बड़ी कंपनियां अब वीगन प्रोडक्ट की तरफ़ ध्यान दे रही हैं. नेस्ले जैसी बड़ी कंपनी ने तय किया है कि वो अब पौधों से जुड़े खाने को अधिक बढ़ावा देगी.
साल 2018 में चिकन, बीफ़ और पोर्क को प्रोसेस करने वाली दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी टायसन फ़ूड्स ने वीगन खाने से जुड़ी एक नई कंपनी ‘बियोंड मीट’ के 6.5 प्रतिशत स्टेक ख़रीद लिए थे.
एक साल बाद ही इस कंपनी ने अपने शेयर क़रीब 8 करोड़ डॉलर में बेच दिए और फिर वीगन खाने से जुड़ी अपनी ही फ़ूड चेन शुरू कर दी.
वीगन सेक्टर में आए इस उछाल के बारे में वीगनॉरी के कैंपेन हेड रिच हार्डी बताते हैं कि कुछ वक़्त पहले तक वीगन शब्द अधिकतर लोगों के लिए अंजान था लेकिन अब हर जगह यह शब्द सुनाई देता है. दुकानों, रेस्टोरेंट और सड़कों पर लोग इसके बारे में बातें करते हैं. अख़बारों और मैगज़ीन में इसके बारे में आर्टिकल लिखे जाते हैं.
4. अत्याधिक वीगन होने के नुक़सान
वीगन अभियान के साथ जुड़े लोग जानवरों और पर्यायवरण के प्रति अपने प्रेम के लिए जाने जाते हैं लेकिन कुछ वक़्त से अत्याधिक वीगन कल्चर की आलोचना भी होने लगी है.
कुछ जगहों से किसानों और मीट पालकों की दुकानों पर हमले करने और उनकी दुकानें जबरन बंद करवाने के मामले सामने आए हैं.
ब्रिटेन के एक किसान एलिसन वॉग ने बीबीसी से कहा, ”जब लोग हमें हत्यारा या बलात्कारी कहते हैं तो यह बहुत ज़्यादा बुरा होता है.”
ऐसे ही मौक़ों पर सेव मूवमेंट जैसे कुछ संगठन भी सामने आए हैं जो लोगों को अहिंसक तरीक़ों से वीगन बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
इस बीच वीगन समुदाय में ऐसे लोगों को फ़र्ज़ी वीगन कहा जाता है, एवोकेडो, बादाम और ब्रोकोली का सेवन करते हैं. ये तीनों ही चीज़ें वीगन फ़ूड में शामिल नहीं हैं.
दरअसल, इस पौधों के ज़रिए मधुमक्खियां पॉलिनेशन की प्रक्रिया पूरी करती हैं, अगर लोग इन पौधों को खाएंगे तो मधुमक्खियों को समस्या होगी.
5. वीगन होना नई परंपरा नहीं है
वीगन शब्द आजकल प्रचलित हुआ है लेकिन साल 1940 में ब्रिटेन में डोनल्ड वॉटसन ने एक वीगन सोसाइटी बना दी थी.
डोनल्ड वॉटसन ने जब डेरी इंडस्ट्री में जानवरों के साथ होने वाला अत्याचार देखा तो उन्होंने डेरी प्रोडक्ट खाने बंद कर दिए और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना शुरू किया.
वहीं भारतीय समाज में शाकाहारी खाने का चलन उससे भी पहले से मौजूद है. भारत में हिंदू, बौद्ध और जैनियों में शाकाहारी खाने की परंपरा लंबे वक़्त से है, इसका एक संबंध गाय को पवित्र पशु मानना भी है.
यूरोप में शाकाहारी खाने का विचार पुरातन ग्रीस से उभरा है. यहां पायथागोरस ने इसको काफ़ी प्रचारित किया. पायथागोरस को हम सभी गणित में दी गई पायथागोरस थ्योरम की वजह से जानते हैं.
उन्होंने कहा था, ”किसी अन्य जीव का मांस अपने मांस में निगलना, अपनी भूख के लिए किसी अन्य को मार देना किसी दानव जैसा काम है.”
यहां तक कि जब तक लोगों को वेजिटेरियन शब्द के बारे में नहीं मालूम था तब तक वो इसे खाने को ‘पायथागोरियन डाइट’ ही कहते थे.
-BBC

Dr. Bhanu Pratap Singh