अगर किसी भी व्यक्ति को कुत्ता, बंदर, सियार, लोमड़ी आदि के काट लेतो पीड़ित व्यक्ति के लिए बहुत ही गंभीर अवस्था हो सकती है। अगर जानवर रेबीज से पीड़ित होता है तो मनुष्य को पागलपन के दौरों के साथ मृत्यु तक हो जाती है। इसलिए किसी भी कुत्ते, बंदर, सियार, लोमड़ी के काटने के उपरांत हमें रेबीज के फैलने से पहले अगर हम रेबीज वैक्सीनेशन करवा लें तो इस समस्या से निजात पा सकते हैं। इस संबंध में जागरूकता के लिए हर वर्ष 28 सितंबर को 2007 से विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है ।
रेबीज एक विषाणु जनित रोग है। जब इसके लक्षण शुरू होते है और हमें जानकारी में आता है तब तक यह बहुत घातक हो चुका होता है। रेबीज आज पूरी तरह से रोकथाम योग्य वैज्ञानिकों द्वारा बना दिया है| इसके बावजूद विश्व में अफ्रीका और एशिया के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 90% बच्चों की मृत्यु हर वर्ष रैबीज से होती है। अनुमान के अनुसार, हर वर्ष 59000 लोगों की मृत्यु रेबी से हो जाती है।
भारत में रेबीज एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। प्रतिवर्ष 20000 लोगों की मृत्यु हो जाती है। अंडमान और निकोबार तथा लक्ष्यदीप को छोड़कर सारे देश में सर्वाधिक है। भारत में 90% रेबीज के मामले कुत्ते और बंदर के काटने से पैदा होती है। इसमें भी कुत्ते के काटने की संख्या 80 परसेंट तक रहती है | इसलिए कुत्ते के काटने पर लापरवाही ना बरतें। तुरंत कपड़े धोने वाले साबुन से अच्छी तरह साफ़ अवश्य करें क्योंकि रेबीज के लक्षण 1 से 3 महीने में दिखाई पड़ते हैं और तब तक वैक्सीनेशन का समय भी निकल जाता है |
5 साल से 15 साल की आयु के बीच के बच्चे अक्सर कुत्ते और बंदरों की चपेट में आ जाते हैं। बच्चा अपनी चंचलता की स्वाभाविकता से दोनों ही जानवरों के साथ कीड़ा करते हुए या छेड़खानी करते वक्त उनसे पीड़ित हो जाते हैं। अतः सभी मां बाप को बच्चों के इस क्रिया से होने वाले परिणामों के प्रति हमेशा सचेत करते रहने के साथ उन्हें एक विश्वास भी पैदा करना चाहिए कि कभी भी कोई कुत्ता या बंदर काट ले तो वह बिना संकोच के, बिना डर के अपने माता-पिता को बता दें ताकि सही समय पर उन्हें वैक्सीनेशन कराकर उसे रैबीज के दुष्परिणामों से बचाया जा सके।
सरकार एंटी रेबीज टीकाकरण पर सालाना लाखों रुपये खर्च करती है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में रैबीज फैलने से कम व्यक्ति की मौत हुई है। जबकि कुत्ते और बंदरों के काटने से बड़ी संख्या में घायल व्यक्ति सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। हर रोज जिले भर के अस्पतालों में 20 से 25 मरीज अवश्य आ रहे हैं। जिले के अस्पतालों, सीएचसी और पीएचसी पर एआरवी टीके लगाने की सुविधा दी गई है। अगर सीएचसी पर एंटी रैबीज इंजेक्शन खत्म होता है तो जिला अस्पताल में मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ जाती है। लेकिन, ये निश्चित नहीं है कि यह लोग कुत्ते या बंदर के काटने के बाद रैबीज से ही पीड़ित हो।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने रेबीज के कारण मनुष्य की मृत्यु से बचाव व नियंत्रण के माध्यम से रेबीज को रोकने के उद्देश्य राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम को लागू किया है। वर्ष 2030 तक इसको पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य रखा है सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में यह निःशुल्क लगाने का प्रबंधन भी है परंतु आज रेबीज के इंजेक्शन की मांग इतनी अधिक बढ़ गई है जो सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति पूर्ण नहीं हो पाती है। अतः पीड़ित को बाजार से पूरे मूल्य पर लेनी पड़ती है उसमें भी असली नकली का चक्कर रहता है।
रेबीज वाले मरीज को शुरू के एक-दो दिन में बुखार, भूख न लगना, कमजोरी, चिड़चिड़ापन आदि की समस्या होने लगती है। ऐसे व्यक्ति के मुंह से लार भी अधिक निकलने लगता है। अगर इनमें से कोई लक्षण है तो फौरन डॉक्टर को दिखाए। रेबीज से बचने के लिए सही समय पर प्रिवेन्टिव उपाय करने जरूरी हैं। यानी उसके वायरस को मरीज के शरीर में बढ़ने से रोका जा सकता है और रेबीज से बचा जा सकता है।
विश्व रेबीज दिवस फ्रांस के प्रसिद्ध रासायनिक और सूक्ष्म जीव विज्ञानी लुई पाश्चर की पुण्यतिथि के अवसर 28 सितंबर को उन्हें सम्मान देने हेतु रेबीज दिवस के रूप में चिन्हित किया गया। आपने ही पहला रेबीज टीका विकसित किया था तथा रैबीज रोकथाम की नींव रखी थी|
–राजीव गुप्ता ‘जनस्नेही’
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