नारी आज पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सभी दिशाओं में अपना कदम बढ़ा रही है । काम में सभी देशों की सरकार पूरे तरीके से नारी का साथ दे रही हैं। फिर भी आज अनेक विकासशील देशों में नारी समानता का अपना अधिकार प्राप्त नहीं कर पाई है। यह सब कुछ पुरुष प्रधान समाज की दोहरी मानसिकता और सरकार के ढीले रवैए के कारण है।
महिलाएं ही समस्त मानव प्रजाति की धुरी हैं। वे न केवल बच्चे को जन्म देती हैं बल्कि उनका भरण-पोषण और संस्कार भी देती हैं| महिलाएं अपने जीवन में एक साथ कई भूमिकाएं जैसे- मां, पत्नी, बहन, शिक्षक, दोस्त बहुत ही खूबसूरती के साथ निभाती हैं| बढ़ते बच्चों को मां जीवन के बारे में अमूल्य सीख देती है- जैसे कि विपरीत हालात में कैसे असफलताओं का मुकाबला किया जाए और किस तरफ सफलता की ओर एक-एक कदम बढ़ाया जाए|
महिला समानता अधिकार की मांग सबसे पहले अमेरिका की महिलाओं ने मुखर की। बड़े आश्चर्य की बात है की महिलाओं को अमेरिका में वोट देने का अधिकार नहीं था| महिलाओं को 26 अगस्त 1920 को वोट देने का अधिकार का मिला। अमेरिका में महिला अधिकार की लड़ाई 1853 से शुरू हुई थी, जिसमें सबसे पहले विवाहित महिलाओं ने संपत्ति पर अधिकार माँगना शुरू किया था| वर्ष 1920 में संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में 19 वा संशोधन स्वीकार किया गया था|
कल्पना कीजिए अगर आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल रही होती है तो अनेक देशों की और परिवारों की क्या स्थिति होती। भारत में तो सम्मान के रूप में नारी को अर्धनारीश्वर कहते हैं| यह बात अलग है अधिकारों के दृष्टिकोण से वाह भारत की दकियानूसी मानसिकता के चलते हुए महिलाओं को आजादी के बाद से यह सफर शुरू हुआ| भारत में आज़ादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का क़ानूनी अधिकार 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के प्रयास से मिला। इसी का परिणाम है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध से पहले महिलाओं के आंदोलन शुरू किया गया था। अमेरिका में 1830 के दशक के अधिकांश राज्यों में मतदाता अधिकार केवल अमीर श्वेत पुरुषों को ही था ।1848 में सेनेका फॉल्स, न्यूयॉर्क में उन्मूलनवादियों (abolitionists) का एक समूह इकट्ठा हुआ था|यह समूह महिलाओं की समस्याओं और महिलाओं के अधिकारों के बारे में चर्चा कर रहा था|महिलाओं के इस समूह में कुछ पुरुष भी शामिल थे| उन्होंने तय किया है कि अमेरिकी महिलाएं भी अपनी खुद की राजनीतिक पहचान की हकदार हैं| कुछ सालों बाद यह आन्दोलन काफी तेज हो गया| लेकिन समय के साथ-साथ, गुलामी-विरोधी आंदोलन के कारण, महिला अधिकारों के आंदोलन ने इस आन्दोलन की रफ़्तार को काफी कम कर दिया| लेकिन 1890 के दशक के दौरान, नेशनल अमेरिकन वुमन सफ़रेज एसोसिएशन की शुरुआत हुई और इसकी अध्यक्षता एलिजाबेथ कैडी स्टैंटन ने की| दशक के समापन से पहले इडाहो और यूटा ने महिलाओं को वोट देना का अधिकार दिया| न्यूजीलैंड विश्व का पहला देश है, जिसने 1893 में महिला समानता की शुरुआत की।
–राजीव गुप्ता ‘जनस्नेही’
लोक स्वर, आगरा
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