तुलसी जयन्ती पर गोष्ठी में गूंजे भारतीय संस्कृति के स्वर्णिम स्वर
गोस्वामी तुलसीदास भारतीय दर्शन के अमर प्रतीक
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आगरा, उत्तर प्रदेश भारत। गोस्वामी तुलसीदास केवल एक कवि नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के कालजयी स्तम्भ थे। उनके काव्य ‘श्रीरामचरित मानस’ में भारतीय जीवन मूल्यों की वह अनमोल धरोहर संजोई गई है, जो जीवन को उपयोगी, सार्थक और सफल बनाती है। यह उद्गार डॉ. देवी सिंह नरवार ने गोस्वामी तुलसी जयन्ती पर व्यक्त किए।
मानवता के मूल्य मानस में सन्निहित
डॉ. नरवार ने बताया कि मानस केवल राम की कथा नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन है जिसमें माता-पिता और गुरु का सम्मान, प्रेम, करुणा, दया, त्याग, उदारता और भ्रातृत्व जैसे मूल्य जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। “प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु-पिता गुरु नावहि माथा।”
धर्म ही राष्ट्र की आत्मा है
डॉ. नरवार ने कहा कि ईश्वर के तीन कार्य— सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का विनाश और धर्म की स्थापना—भारतीय जीवन मूल्यों की नींव हैं। उन्होंने कहा, “धर्म बचेगा तो राष्ट्र बचेगा।”

प्राचार्य का वक्तव्य : संतों से मूल्यों की सुरक्षा
प्रो. विजय श्रीवास्तव ने कहा कि रामचरित मानस में मूल्यों की रक्षा हेतु गूढ़ युक्तियाँ दी गई हैं। “अगर तुलसी जैसे चार-छह और होते, तो जीवन मूल्यों की पताका विश्व भर में फहराती।”
समाज में मर्यादा की पुनर्स्थापना आवश्यक
आज सेवक-स्वामी, पति-पत्नी, पिता-पुत्र और भाई-भाई के संबंधों की मर्यादा क्षीण हो रही है। शिक्षक का धर्म है कि वह शिष्यों में संस्कार जागृत करे जिससे जीवन मूल्यों की रक्षा संभव हो सके।
डॉ. भदोरिया का कथन : मर्यादा ही मूल जीवन मूल्य
डॉ. रंजीत सिंह भदोरिया ने कहा कि मर्यादा ही जीवन का सौन्दर्य, शक्ति और शील की रक्षा करती है। श्रीरामचरित मानस मर्यादा का जीवन्त ग्रंथ है। राम का आदर्श चरित्र अनुकरणीय और पूज्य है।
आध्यात्मिक वातावरण में संपन्न हुआ कार्यक्रम
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा की सरस्वती वंदना और श्रीराम स्तुति से हुआ। संचालन प्रो. युवराज सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रंजना कुलश्रेष्ठ ने किया। डॉ. दुष्यंत कुमार सिंह, डॉ. सौरभ देवा, अनिल अरोड़ा ‘संघर्ष’, डॉ. कृष्णपाल सिंह सोलंकी, डॉ. विकास कुमार, डॉ. ओम प्रकाश आदि ने विचार रखे।
✍️ संपादकीय : रामचरित मानस—एक जीवंत जीवन संहिता
श्रीरामचरित मानस केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय जीवन-दर्शन, संस्कृति और नैतिकता की संहिता है। यह हमें केवल राम की पूजा करना नहीं, राम जैसा जीवन जीना सिखाता है। जब सामाजिक मर्यादा और मूल्य विखंडित हो रहे हैं, तब तुलसीदास की वाणी हमें संस्कार, धर्म और राष्ट्र-भावना की पुनर्स्थापना का आह्वान देती है। आइए, हम केवल राम को पूजें नहीं, राम को जिएं।
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