Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा। सावन सूखा बीता जा रहा है। किसानों की धडकनें बढने लगी हैं। बरसात की आस में गांवों में तरह तरह से जतन शुरू हो गये हैं। कहीं कोई कन्या तप पर बैैैठ गई है तो कहीं सदियों पुरानी परंपराओं का सहारा लिया जा रहा है।
राया के विसावली में तप पर बैठी बालिका
थाना राया क्षेत्र के गाँव विसावली में एक कन्या बरसात के लिए कढ़ी धूप में जपतप कर रही है। जिसके साथ ग्रामीण भी भजन कीर्तन कर इंद्रदेव को मनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह स्थिति जब कि हम इक्कीसवीं सदी में चल रहे हैं और ग्रामीणजन तपबल से बरसात आने का विश्वास मन में लिए हुए हैं।
कई प्रदेशों में मानसूनी बरसात के चलते बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं। जबकि इस क्षेत्र में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो रही है।पशुओं के लिए चारे का इंतजाम किसानों द्वारा किया गया था वह फसल भी सूख गई।
आगामी खरीफ की फसलों की बुबाई लेट हो रही है। जिससे किसान पूरी तरह बर्बाद होने के कगार पर हैं। हलांकि इस कन्या के तप से पूर्व गाँव दो किसानों ने भी पूजा अर्चना के जरिये इंद्रदेव को मनाने का प्रयत्न किया है।
नंदगांव में चल रहा है ग्वारा मंडला
लेकिन बूँदाबादी के चलते ग्रामीणों ने उसे तप से उठा दिया गया। जब बरसात नहीं आई तो गाँव की एक कन्या ने यह संकल्प लिया कि वह बिना खाये पीये इंद्र देव को मनाने के लिए तपस्या करेगी और जब तक झमाझम बरसात नहीं होगी वह तप पर बैठी रहेगी।हालांकि ग्रामीणजनों का भी यही विश्वास है कि कन्या के तप से बरसात आएगी।
वहीं बारिश के लिए नंदगांव के लोगों ने हवन और ग्वारमंडला (ग्वालों द्वारा भंडारा करना) कर बारिश की कामना की गई।बृजभूमि भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली नंदगांव में पौराणिक कथाओं के आधार पर तमाम प्रथाएं प्राचीन काल से चली आ रही हैं, उन्ही में से एक प्रथा है ग्वारमंडला प्रथा (ग्वालों द्वारा भंडारा करना) शामिल है। यह बारिश में सहायक रहता है। जब सूखा और अकाल पड़ते थे, तो बारिश कराने के लिए जंगल में गाय चराने वाले ग्वाले मिलकर भगवान श्रीकृष्ण के काका अक्रूर जी के मंदिर पर हवन और दाल, बाटी, चूरमा का भंडारा करते थे। जिसको गांव वाले ग्वारमंडला कहते थे। जंगल में होने वाले इस भंडारे के लिए सूखी खाद्य सामग्री गांव से ही जाती थी, लेकिन भंडारे का प्रसाद गांव में नहीं आता था।
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