‘हिन्दी से न्याय’ अभियान को संत समर्थन: स्वामी रामभद्राचार्य ने दिया आशीर्वाद
दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय के नेतृत्व में न्यायिक-भाषायी स्वतंत्रता का राष्ट्रव्यापी संकल्प
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वृंदावन (मथुरा), उत्तर प्रदेश, भारत। न्यायिक-भाषायी स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक और ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान के प्रणेता चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय को जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने आशीर्वाद देते हुए उनके अभियान को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने का संकल्प दिलाया।
8 फरवरी 2025 को वृंदावन में हुए इस ऐतिहासिक आयोजन में स्वामी रामचन्द्रदास जी महाराज (स्वामी रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी) और श्री आशुतोष ब्रह्मचारी जी महाराज (श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति अभियान के मुख्य वादी) समेत कई प्रख्यात संत उपस्थित रहे।
संतों का आशीर्वाद और न्यायिक स्वराज का संकल्प
वृंदावन की इस संगोष्ठी में स्वामी रामभद्राचार्य ने न केवल अभियान को समर्थन दिया, बल्कि चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय को ‘विजयी भव:’ का आशीर्वाद देकर न्यायिक-भाषायी स्वतंत्रता की इस लौ को अंत तक जलाए रखने का आह्वान किया। इस दौरान पंडित दीनदयाल उपाध्याय के कृतित्व, व्यक्तित्व और उनकी हत्या का स्मरण कर उपस्थित संतगण और चन्द्रशेखर भावुक हो उठे।
तीन दशकों से जारी संघर्ष, 60 करोड़ लोगों का समर्थन
हिन्दी माध्यम से एल.एल.एम. उत्तीर्ण करने वाले प्रथम भारतीय छात्र चन्द्रशेखर उपाध्याय पिछले तीन दशकों से न्यायिक व्यवस्था में भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा हेतु संघर्षरत हैं। ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान के अंतर्गत अब तक पौने दो करोड़ हस्ताक्षर एकत्र हो चुके हैं, और यह संख्या छह करोड़ भारतीयों के समर्थन का प्रमाण है।

‘एक परिवार, एक हस्ताक्षर’ के संकल्प के साथ अभियान की 31 प्रांतीय टीमें घर-घर जाकर जनजागरण कर रही हैं। अभियान के समर्थकों से अनुरोध किया गया था कि वे कम से कम 10 अन्य लोगों को इस मुहिम से जोड़ें, जिससे अब तक लगभग 60 करोड़ भारतीय अभियान के साथ खड़े हैं।
संविधान संशोधन की मांग और प्रधानमंत्री से संवाद
अभियान के तहत संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग की जा रही है, ताकि सुप्रीम कोर्ट और 25 हाईकोर्ट्स में हिन्दी सहित संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में न्यायिक कार्यवाही संभव हो सके। यह विषय 16वीं और 17वीं लोकसभा में संसद में उठ चुका है, और अब इसे अमलीजामा पहनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वार्ता की जाएगी।
उत्तराखंड में मिली सफलता, अब राष्ट्रव्यापी लक्ष्य
संविधान संशोधन से पूर्व उत्तराखंड में यह कानून लागू कराया जा चुका है, जो अभियान की पहली बड़ी सफलता है। अब इसे राष्ट्रव्यापी स्तर पर लागू कराने का संकल्प लिया गया है।
न्यायिक-भाषायी स्वतंत्रता: भारत की अस्मिता का प्रश्न
यह आंदोलन केवल भाषा का प्रश्न नहीं, बल्कि न्यायिक स्वराज का संकल्प है। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में जनता को उसकी मातृभाषा में न्याय मिलना चाहिए। न्याय की भाषा यदि जनता की भाषा होगी, तो न्याय सुलभ और पारदर्शी होगा।
‘हिन्दी से न्याय’ अभियान अब निर्णायक मोड़ पर है। संतों का आशीर्वाद, करोड़ों भारतीयों का समर्थन और संविधान संशोधन की मांग के साथ यह आंदोलन न्यायिक स्वराज की दिशा में ऐतिहासिक कदम बढ़ा चुका है।
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