मेरे पिता शीलेन्द्र पाल शर्मा, निवासी निहाल निकेतन, अशोक नगर, आगरा ने अपनी मृत्यु से दस वर्ष पूर्व वर्ष 2013 में, जब वे पूर्णतः स्वस्थ थे, उन्होंने एक दिन मुझसे अपने व माता जी के देहदान संबंधी वसीयत नामे पर हस्ताक्षर करने को कहा। चूंकि देहदान हिंदुओं में एक असमान्य प्रक्रिया हैं, झिझकते हुए पर मैंने व मेरे भाई ने गवाह के तौर पर हस्ताक्षर किए।
मैं समय-समय पर उनके इस संकल्प को लेकर उनके मन को टटोलता भी रहता था। लेकिन वह हमेशा देहदान के अपने संकल्प को लेकर दृढ संकल्पित व कर्मकांडों के विरुद्ध ही बने रहे।
आयु संबंधी परेशानियों के कारण पिछले साल 24 नवंबर, 2023 की सुबह उन्होंने अपनी सांसारिक यात्रा पूर्णता की।उन्होंने देहदान का संकल्प लिया हुआ था, मैंने सरोजनी नायडू चिकित्सालय के एनाटॉमी विभाग व नेत्र विभाग से संपर्क स्थापित किया। पहले सरोजिनी नायडू अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञों ने लगभग एक घंटे में कार्निया को निकाल कर नेत्रदान की चिकित्सकीय औपचारिकताओं को पूरा किया। चूंकि उनकी देह श्मशान घाट पर अग्नि को समर्पित नहीं की जानी थी फिर भी कुछ हिंदू औपचारिकताओं को पूरा कर दोपहर सरोजिनी नायडू अस्पताल के एनाटॉमी विभाग को उनके शव को चिकित्सकीय अनुप्रयोगों के लिए समर्पित किया गया।
पिताजी की देहदान की वसीयत अनुसार, क्या देहदान हमारी हिंदू परंपरा का हिस्सा बन सकता है? क्या यह सही है? यह वह प्रश्न था जिसको कुछ ने सराहा, कुछ इस पर संदेह कर रहे थे।जिसका जवाब संभवतः यह हो सकता है।
मृत्यु के पश्चात सबसे पहला व दूसरा प्रश्न सभी के मन में यह जरूर आता है कि मृतक शरीर का क्या हो? और क्या जिस प्रकार मृत्यु के पश्चात भी मनुष्य को छोड़कर सभी मृतक शरीर किसी न किसी तरह अपना योगदान दे रहे होते हैं (मृतक पेड़ जलाऊ लकड़ी, जानवरों की खाल या शरीर के अन्य अंगों का उपयोग… और अंततः मिट्टी में मिलकर खाद में बदल जाना) मानव शरीर का दफनाने या जलाने के अतिरिक्त क्या योगदान है(वर्तमान में मानव शरीर का दफनाना या जलाना भी प्रदुषणकारी होता जा रहा है, जगह या जलाऊ लकड़ी की कमी के कारण)।ऐसे में देहदान/ अंगदान एक स्वच्छ प्रक्रिया है जहां मरने के पश्चात भी मानव शरीर की उपयोगिता बनी रहती है, मानव शरीर के चिकित्सकीय उपयोग/ प्रशिक्षण के रूप में। मृतक की आंखें किसी को फिर से देखने का मौका दे सकती हैं, त्वचा व भिन्न अंग किसी के काम आ सकते हैं या चिकित्सकीय परीक्षण में उपयोगी हो सकते हैं।
यह वह था जहां मेरे पिता आधुनिक दधीचि के तौर पर मेरे लिए व मेरे परिवार के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
विचार करें- देहदान/अंगदान का संकल्प लें – मानव शरीर की उपयोगिता मृत्यु के पश्चात भी बनाए रखें।डॉक्टर आलोक कुमार, आगरा
9412331314

आज भी जीवित हैं मेरे पिता, डॉ आलोक कुमार से जानिए कैसे
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