maharana pratap national research chair

मेवाड़ विवि में महाराणा प्रताप राष्ट्रीय शोध पीठ स्थापित, कुलपति प्रो. केएस राना ने कहा- देश- दुनिया को देंगे नया संदेश, देखें वीडियो

Education/job NATIONAL साक्षात्कार

डॉ. भानु प्रताप सिंह

Chittorgarh, Rajasthan, India. महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) भारत के एकमात्र ऐसे वीरपुत्र हैं जिन्होंने मुगल शासक अकबर (Mughal emperor Akbar) की पराधीनता कभी स्वीकार नहीं की। हिन्दुओं की धर्मध्वजा को सदैव ऊंचा रखा। राजमहल छोड़कर जंगल और पहाड़ों में रहे पर कभी झुके नहीं। घास की रोटियां तक खाईं लेकिन अकबर का संधि प्रस्ताव भी स्वीकार नहीं किया। इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध हल्दी घाटी (Haldi ghati war Battle of Haldighati) में हुआ। मुगल फौज में त्राहि-त्राहि मचा दी। युद्ध का परिणाम क्या रहा, इसे लेकर आज भी संशय है। वामपंथी इतिहासकार कहते हैं कि हल्दी घाटी युद्ध में अकबर की विजय हुई। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि अकबर की नहीं, महाराणा प्रताप की विजय हुई। आखिर हल्दीघाटी युद्ध की वास्तविक कहानी क्या है, वे कौन लोग थे जिन्होंने महाराणा प्रताप की सहायता की, क्या यह युद्ध हिन्दू और मुसलमान के बीच हुआ, उस समय युद्ध के लिए व्यूहरचना कैसे की जाती थी, इस युद्ध का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव क्या रहा, महाराणा प्रताप के शासन में कला की क्या स्थिति थी, खानवा युद्ध वास्तव में कहां हुआ था, युद्ध में महाराणा प्रताप के वंशज राणा सांगा के साथ बृज के कौन-कौन से राजा थे? इन सवालों के जवाब भारतीय परिप्रेक्ष्य में ढूंढे जाने की जरूरत है। ऐसे ही तमाम उद्देश्यों को लेकर मेवाड़ विश्वविद्यालय, चित्तौड़गढ़, राजस्थान में महाराणा प्रताप राष्ट्रीय शोध पीठ ( Maharana Pratap national research chair) की स्थापना की गई है। विश्वविद्याय के कुलपति और देश के जाने-माने शिक्षाविद व पर्यावरणविद प्रो. के.एस. राना (Mewar university VC Dr KS rana) ने इस बारे में Live Story Time को विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस पीठ के माध्यम से देश और दुनिया को नया संदेश दिया जएगा। यह पीठ राजस्थान की प्रथम और देश की तीसरी है।

Live Story Time: महाराणा प्रताप को लेकर क्या नया करने जा रहे हैं?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: जब कुलपति के रूप में जॉइन किया तो बड़ी खुशी थी कि चित्तौड़गढ़ महाराणा प्रताप की नगरी है। आश्चर्य इस बात का था कि महाराणा प्रताप के नाम प कोई शोध नहीं हुआ। यहां हम सुनते रहते थे कि अकबर महान है, अगर अकबर महान है तो राणा प्रताप क्या थे? यह बिलकुल उल्टी बात है, जिसका कोई मतलब नहीं है। असल में आजादी के बाद नेहरू मंत्रिमंडल में लगातार तीन शिक्षा मंत्री ऐसे हुए जो अकबर के समर्थक और महाराणा प्रताप के विरोधी थे। सारा पाठ्यक्रम पलटकर मुगलों पर केन्द्रित कर दिया। मुगल हिन्दुस्तानी हैं लेकिन सवाल यह है कि जो आक्रांता विदेश से आए, भारत में 300 साल राज किया, हमारी जनता झेलती रही और उनकी गौरवगाथा पढ़ाई जा रही है। जिन लोगों ने मुगलों की दासता को स्वीकार नहीं किया, उनमें सबसे पहला नाम महाराणा प्रताप का था। बच्चा-बच्चा जानता है कि महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाईं। सामाजिक ताना-बाना जोड़ा। इसके बाद भी महाराणा प्रताप के बारे में यह अफवाह फैलाने की कोशिश की गई कि वे मुस्लिम विरोधी थे। मैंने भ्रमण के दौरान पाया कि आदिवासी, भील, मुस्लिम और छोटे तबके के सभी लोग महाराणा प्रताप के साथ थे। उनकी सेना सेक्लुयरिज्म का अनुपम उदाहरण थी। सेना कोई हिन्दू या मुस्लिम पर नहीं बल्कि राष्ट्र धर्म के नाम पर थी। इसी सेना के बल पर महाराणा प्रताप ने किसी भी कीमत पर मुगलों का साम्राज्य स्वीकार नहीं किया। मैं हल्दी घाटी मैदान गया। वहां पर एक संग्रहालय बनाया गया है। पास में ही एक तालाब है जिसे रक्तताल कहते हैं। कहते हैं कि हल्दी घाटी युद्ध के दौरान यह तालाब खून से भर गया था।

Live Story Time: महाराणा प्रताप राष्ट्रीय शोध पीठ का गठन क्यों किया?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: महाराणा प्रताप से प्रेरणा लेकर वियतनाम ने लड़ाई लड़ी थी और अमेरिका को नाकों चने चबा दिए थे। वियतनाम के राष्ट्रपति महाराणा प्रताप की समाधि पर आए और लिफाफे में वहां की मिट्टी लेकर गए। उसने कहा था कि मैं यह मिट्टी वियतनाम के राजा की समाधि में मिलाऊँगा। ताज्जुब यह है कि महाराणा प्रताप के नाम पर राजस्थान में कोई पीठ नहीं है। पंजाब और मध्य प्रदेश में है। राजस्थान में महाराणा प्रताप के नाम से कॉलेज तो हैं लेकिन शोध पीठ नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी कॉलेज हैं लेकिन शोध पीठ नहीं है। हकीकत यह है कि नकली इतिहास को पढ़ाया गया और महाराणा प्रताप के असली इतिहास को छुपाया गया है। हमको मुगलों के इतिहास को पढ़ने की क्या जरूरत है। हमें अपने राजाओं को इतिहास पढ़ाना चाहिए, जो नहीं हुआ। इसी उद्देश्य से हमने महाराणा प्रताप राष्ट्रीय शोधपीठ का गठन किया है।

Live Story Time: पीठ का मुख्य काम क्या होगा?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: महाराणा प्रताप से सबंधित खोये हुए दस्तावेज एकत्रित करेंगे। दार्शनिक, सामाजिक, आर्थिक, युद्ध से संबंधित रणनीतियां पढ़ाएंगे। उस समय आमने-सामने की लड़ाई होती थी। अब तो चोरी-छिपे की लड़ाई है। पीठ में हमने उपनिदेशक, सहायक निदेशक समेत सात पोस्ट सृजित की हैं। मैं चेयरमैन हूँ। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संरक्षक रहेंगे। भारत के प्रसिद्ध तीन लोगों को विशेषज्ञ के बतौर नामांकित करेंगे।

Live Story Time: जब पंजाब और मध्य प्रदेश में पीठ है तो एक और पीठ की क्या आवश्यकता है?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: महाराणा प्रताप शोधपीठ की राजस्थान में तो सबसे पहले जरूरत थी। राजस्थान रजवाड़ों का इलाका था और इनके सिरमौर राणा प्रताप थे। जो काम सरकारों ने नहीं किया, किसी अन्य विश्वविद्यालय ने नहीं किया, वह काम मेवाड़ विश्वविद्यालय ने कर दिया है। हमने तो कुमाऊँ विश्वविद्यालय में विवेकानंद पीठ बना दी क्योंकि वे नैनीताल से अल्मोड़ा तक पैदल गए थे। महापुरुषों को जीवित रखना हमारा दायित्व बनता है। उनके संस्कार हमारी नई पीढ़ी में आएं ताकि प्रेरणा ले सकें। उल्लेखनीय है कि पंजाबी यूनिवर्सिटी (पटियाला, पंजाब) और डॉ. बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइंस (अंबेडकर नगर, मध्य प्रदेश) में महाराणा प्रताप के नाम पर पीठ कार्यरत है।

Live Story Time: यह पीठ महाराणा प्रताप तक है या उनके वंशजों पर भी काम करेगी?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: महाराणा प्रताप के वंशज महाराजा कुंभा ने नींव डाली। कुम्बलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। व्यक्तित्व से प्रभावित होकर काम करना चाहिए। साम्राज्य और परिवार आधारित नहीं होना चाहिए। 

Live Story Time: कुछ लोग कहते हैं कि हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई थी लेकिन इतिहास में पराजय के रूप में दिखाया है?

कुलपति प्रो. के.एस. राना: मैंने कहा न कि इतिहास लिखने वाले तीन-तीन मुसलमान शिक्षा मंत्री थे।

Live Story Time: यह पीठ इतिहास बदलेगी या सत्य को सामने लाएगी?
कुलपति प्रो. के.एस. राना: जो यथार्थ है, उसे सामने लाएंगे। राणा प्रताप कभी हारे नहीं, उन्होंने कभी पराजय स्वीकार नहीं की। यह अलग बात है कि मुगलों के आतंक के चलते उन्हें इस पहाड़ी से उस पहाड़ी पर घूमना पड़ा। भील, आदिवासी, छोटे तबके के मुस्लिम उनके साथ थे।

Live Story Time: क्या पीठ निचले स्तर पर काम करेगी?
कुलपति प्रो. के.एस. राना: बिलकुल निचले स्तर पर काम करेगी। मेवाड़ यानी आज का उदयपुर, चित्तौड़, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा ही नहीं बल्कि जयपुर, फतेहपुर सीकरी (आगरा) तक जाएंगे। हम स्थान-स्थान पर शाखाएं खोलेंगे ताकि राष्ट्रीय पीठ के लिए आंकड़े उपलब्ध हो सकें। इस आधार पर हम पूरे देश और दुनिया को संदेश देंगे कि महाराणा प्रताप से बड़ा वीर इस धरती पर नहीं हुआ। मेरे पास क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष आए थे। मैंने कहा है कि जयपुर से लेकर मुंबई तक जाने वाले मार्ग का नाम महाराणा प्रताप मार्ग रखवाएं। उसे आगरा तक जोड़ें, खानवा मैदान तक, जहां राणा सांगा ने बाबर से युद्ध किया था। शेरशाह सूरी के नाम पर रोड है, पूरी दिल्ली में मुगलों के नाम पर सड़कें बन गईं, कहां हैं क्षत्रिय और राष्ट्र धर्म के प्रेमी? इस तरह के काम बहुत पहले करने चाहिए थे जो नहीं किए गए और यह पीठ अब ऐसे कार्य करेगी।

Dr. Bhanu Pratap Singh