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भारत पर शनि की ढैय्या का प्रभाव शुरू, 13 फरवरी से सूर्य-शनि की युति में शासन के विरुद्ध जनता का टकराव संभव

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Agra, Uttar Pradesh, India. वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू ज्योतिष में सूर्य को सात्विकता और शुभता को फ़ैलाने वाला ग्रह माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में प्रकाश फैलाता है। शनि को तामसिक और कठोर ग्रह माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में संघर्ष और अंधकार पैदा करता है। प्रकाश और अन्धकार का मिलन होने के परिणाम बड़े विचित्र एवम असामान्य होते हैं।  इससे सूर्य भी दूषित होता हैं और शनि भी कभी-कभी अप्रत्याशित दुर्घटनाओं एवं प्राकृतिक आपदाओं का कहर भी देखने को मिलता है।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वर्ष 2023 में 13 फरवरी से एक माह तक एक दूसरे के महाशत्रु दो ग्रह शासन कारक ग्रह सूर्य और आम जनता का कारक ब्रह्माण्ड के न्यायाधीश शनि ग्रह की एक साथ युति कुंभ राशि में रहेगी। इसके परिणामस्वरूप भारत के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व में उथलपुथल, अप्रत्याशित दुर्घटनाओं, आगजनी एवं प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ शासन के विरुद्ध आम-जनमानस का टकराव भारत के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व में देखने को मिल सकता है। एक माह तक सूर्य-शनि की युति रहने के बाद, 15 मार्च 2023 से सूर्य मीन राशि में गोचर में अपना स्थान परिवर्तन करेंगे, जिससे परिणामस्वरूप 14 अप्रैल 2023 तक फिर से सूर्य-शनि का अशुभ द्विर्द्वादश योग रहेगा। यानी 14 अप्रैल 2023 तक लगातार सूर्य-शनि के संयोग से प्राकृतिक आपदाएं आने का खतरा सम्पूर्ण विश्व में बना रहेगा।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कह सकते हैं कि शनि-सूर्य की युति और द्विर्द्वादश योग का अशुभ प्रभाव सभी लोगों के साथ-साथ देश-दुनिया पर भी देखने को मिलेगा। इस अशुभ योग से देश में तनाव, अशांति और डर का माहौल रहेगा। राजनीतिक नजरिये से भी ये समय अनुकूल नहीं रहेगा। बड़े बदलाव और विवाद होने की आशंका है। सीमा पर कोई बड़ी घटना इस दौरान होने की संभावना प्रबल है। सभी लोगों को भी इस समय धैर्य रखना होगा, नहीं तो बेवजह विवाद की स्थिति बन सकती है।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को शनि के 27 नक्षत्रों के सम्राट पुष्य नक्षत्र में स्वतन्त्र हुए स्वतन्त्र भारत की कर्क राशि में वर्तमान में 17 जनवरी 2023 से ढाई वर्ष के लिए शनि ग्रह की अष्टम ढैय्या का प्रभाव वर्तमान में आरम्भ हो गया है।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने हिन्दुओं के सर्वोच्च धार्मिक पौराणिक ग्रन्थ गीता के प्रवचनों के माध्यम उसके प्रेरणादायक तथ्यों के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि गीता के 18 अध्यायों के पूर्ण सार में स्पष्ट रूप से उल्लेख है, इस भौतिक मायावी संसार में जो जैसा करेगा वो वैसा ही दण्ड प्राप्त करेगा, प्रकृति उपयुक्त समयावधि आने पर सभी को किसी न किसी रूप में व्यक्ति के कर्मोनुसार स्वयं दण्ड प्रदान देती है, चाहे वो कितना बड़ा धर्माचार्य हो या बड़ा नेता हो या अभिनेता, या धनाढ्य, वो प्रकृति के कहर से बच नहीं सकता है। पिछले 2 वर्षों के दौरान हम पूरी दुनिया में देख चुके हैं कि प्रकृति किस तरह का महा-तांडव पूरी दुनिया में कर चुकी है और वर्तमान में भी सम्पूर्ण विश्व में प्रलयंकारी तांडव किसी न किसी रूप में अब भी चल रहा है। कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि प्रकृति अपनी उपयुक्त दण्ड देने की समयावधि आने पर किसी को भी नहीं छोड़ती है, और पूरी निष्पक्षता के साथ अपना दण्ड देने का कार्य फिर क्रूरता से करती है, जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने 18 दिन के महाभारत युद्ध में निष्पक्षता के साथ उस समय के गुनहगारों को अपनी योग-माया से अर्जुन के हाथों क्रूरता से दंड दिया था।

 

पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि गीता के प्रेरणादायक तथ्यों के आधार पर कुल मिलाकर हम यह समझ सकते हैं कि इस संसार में अत्यधिक शक्ति का प्राप्त होना भी व्यक्ति को कभी-कभी निरकुंश बना देता है, वो व्यक्ति कभी-कभी अपने अतीत के अस्तित्व को भी भूल बैठता है कि मैं पहले क्या था और अब क्या हूं। इस मायावी संसार में किसी भी प्रकार की अति शक्ति प्राप्त होने के कारण किसी शख्स या किसी देश को जो कि वर्तमान में हमें रूस-यूक्रेन युद्ध में देखने को मिल रहा है अर्थात अमेरिका अपनी सर्वोच्चता साबित करने के लिए एक छोटे से देश यूक्रेन का रूस के खिलाफ इस्तेमाल करके सम्पूर्ण विश्व को महाविनाश की तरफ ले जाने की तरफ अग्रसर है। वर्तमान में पिछले 11 माह से हमें यह विनाश सम्पूर्ण विश्व पटल पर देखने को मिल रहा है।

 

इसी तरह सम्पूर्ण विश्व में लोकतांत्रिक देशों में कुछ राजनीतिक दलों को भी अहंकार हो जाता है। भारत में ऐसे कितने अनगिनित राजनीतिक दलों का प्रकृति ने उपयुक्त समयावधि आने पर उनके अहंकारों को तोड़ा है। इस संसार को सिर्फ ईश्वर की सत्ता ही चला रही है, बाकी सब उसके मोहरे या प्रतिनिधि मात्र हैं, लेकिन कभी-कभी ईश्वर द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों को भी इस भौतिक मायावी संसार में अत्यधिक शक्ति प्राप्त होने के बाद उन्हें किसी न किसी रूप में अहंकार हो जाता है।

 

अर्जुन को भी अपने आप को उच्च-स्तर का धनुर्धर होने का अहंकार हुआ था, लेकिन बाद श्री कृष्ण ने उस वास्तविकता को महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अर्जुन को समझाया था, तब अर्जुन समझ पाया कि मैं तो एक मामूली धनुर्धर हूँ, ये सब श्री कृष्ण की योग-माया है। पौराणिक काल के द्वापर युग में अपने भौतिक जीवन के आखिरी पलों में श्री कृष्ण ने जब अपने भौतिक शरीर का परित्याग किया तो उन्होंने अपनी वो दिव्य शक्ति, जो श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने उद्देश्यों को पृथ्वी लोक पर पूरा करने के लिए द्वापरयुग में दी थी, उन्होंने आखिरी समय में वो शक्ति एक बांस के डंडे के माध्यम से बैकुंठ जाने से पहले अपने पास वापस ले ली थी। अर्जुन, श्री कृष्ण के जीवन के आखिरी समय में युधिष्ठर के मना करने पर हाथ नहीं मिलाना चाहता था क्योंकि युधिष्ठर धर्मराज थे वो वास्तविकता को जानते थे। इसलिए युधिष्ठर ने ही अर्जुन को श्री कृष्ण के आखिरी क्षणों में श्री कृष्ण से हाथ मिलाने से मना किया था। अर्जुन यह भूल गया कि श्री कृष्ण योग-माया के अधिपति हैं, और फिर श्री कृष्ण ने अपनी माया एवम बुद्धिकौशल से एक बांस के डंडे के सहारे अपनी शक्ति को अर्जुन से वापस ले लिया।  इसके बाद अर्जुन एक मामूली व्यक्ति रह गया था। इसी तरह भारत के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व पटल के आधुनिक युग में भीअति शक्ति प्राप्त कुछ देश एवं राजनीतिक दल कुछ ऐसा ही कर रहे हैं।

Dr. Bhanu Pratap Singh