आगरा। अगर आप हिन्दी भाषी हैं तो भी हिन्दी को हल्के में न लें। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की हाईस्कूल की परीक्षा में यह व्यवस्था कर रखी है। आपके भले ही 80 फीसदी अंक हों लेकिन अगर हिन्दी में अनुत्तीर्ण हैं तो अनुत्तीर्ण ही रहेंगे। किसी अन्य विषय में अनुत्तीर्ण हैं तो राहत मिल सकती है, लेकिन हिन्दी के मामले में नहीं।
यह कहना है कि सेंट विसेंट कन्या हाईस्कूल, वजीरपुरा, आगरा की प्रधानाचार्य अंतेनिया लाकड़ा का। वे ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान द्वारा हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित संवाद में भाग रही थीं। शिक्षक नेता डॉ. भोजकुमार शर्मा ने यह संवाद आयोजित किया था। प्रधानाचार्य ने कहा कि हम विद्यार्थियों को प्रेरित करते हैं के हिन्दी में वार्तालाप करें। हिन्दी बहुत प्यारी भाषा है। हिन्दी बोलने पर हमें गर्व है। गत वर्ष लॉकडाउन था, फिर भी हमने हिन्दी दिवस मनाया। इसमें अभिभावकों का भी सहयोग रहा। हमारे शिक्षक भी बच्चों को हिन्दी बोलने के लिए प्रेरित करें।
कार्यक्रम का उद्घाटन ‘हिन्दी से न्याय’ अभियान में केन्द्रीय अधिष्ठाता मंडल के सदस्य डॉ. भानु प्रताप सिंह ने किया। वे हिन्दी माध्यम से प्रबंधन विषय में शोध करने वाले पहले शोधार्थी हैं, जिसके लिए भारत सरकार की संस्था ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ ने देश में नौवां स्थान दिया है। उन्होंने कहा कि हिन्दी राजभाषा है लेकिन हिन्दी माध्यम से पीएचडी करने में अनेक समस्याएं आईं। हिन्दी में उत्तर लिखने पर एमबीए प्रथम सत्र में तो शून्य अंक दिए गए थे। उन्होंने कहा कि यथासंभव हिन्दी में ही कार्य करना चाहिए। जहां हिन्दी में कार्य न चल सकता हो, वहां अन्य भाषा का प्रयोग करें। उन्हें लगता है कि नौकरशाही ने अंग्रेजी को सिर पर चढ़ा रखा है। हम सब ठान लें तो हिन्दी को मान-महत्व मिल सकता है।
हिन्दी से न्याय अभियान के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और मुख्य अतिथि डॉ. देवी सिंह नरवार ने कहा कि हिन्दी से न्याय अभियान को न्यायविद चन्द्रशेखर उपाध्याय चला रहे हैं। हिन्दी माध्यम से एलएलएम करने वाले वे देश के प्रथम छात्र हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में व्यवस्था है कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में सभी कार्य अंग्रेजी में होंगे। यह व्यवस्था 15 साल के लिए थी। हमारी मांग है कि न्यायालयों में सभी कार्यवाही हिन्दी में होनी चाहिए। इसी से न्याय समझ में आएगा। इसके लिए अनुच्छेद 348 में संशोधन के लिए पूरे देश में दो करोड़ हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि 14 सितम्बर, 1953 को पहली बार हिन्दी दिवस मनाया गया। हिन्दी भारत का प्राण है। संविधान की रचना के संबंध में उन्होंने उपयोगी जानकारी दी।
संचालन करते हुए डॉ. भोजकुमार शर्मा ने इस बात को सराहा कि सभी शिक्षकों ने हस्ताक्षर अभियान में अपने नाम हिन्दी में लिखे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी का महत्व इतना है कि गूगल पर हिन्दी में बोलें तो वह हिन्दी में उत्तर देता है।
शिक्षिका संगीता कुशांग ने कहा कि हिन्दी हमारी जान है। शिक्षिका उज्मा खातून ने भारतेन्दु हरिश्चंद को याद करते हुए कहा- निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को शूल। शिक्षिका पंजाब कौर ने कहा आज अंग्रेजी के बिना काम नहीं चलता है लेकिन हिन्दी का ध्यान रखें। जाकिर पीटर ने व्यवस्थाएं संभालीं।
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