डॉ नरेंद्र मल्होत्रा: ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ नारा के प्रवर्तक, अब कहते हैं, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बेटा समझाओ’, पढ़िए रोमांचक परिचय

HEALTH लेख

“प्रकाशपुंज डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा: एक जीवन, अनगिनत प्रेरणाएँ”

डॉ. भानु प्रताप सिंह

(NM@2AM के लेखक)

परिचय का सौभाग्य

आज मैं जिस महापुरुष का परिचय देने के लिए यहाँ खड़ा हूँ, वह कार्य मेरे लिए केवल सौभाग्य नहीं बल्कि जीवन का गर्व भी है।

किसी शायर ने कहा है—
“ज़िंदगी जि़स्त नहीं, ज़िम्मेदारी है,
जो इसे निभा ले वही असल में ज़िंदा है।”

और अगर इस पंक्ति का सजीव उदाहरण किसी में देखना हो, तो वह हैं आगरा के डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी।

शैक्षिक उपलब्धियाँ

उनके मुकुट में चिकित्सा विज्ञान की एक दर्जन डिग्रियां सुशोभित हैं। अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित हैं।

लेखन और प्रकाशन

66 पुस्तकों के लेखक हैं। स्वास्थ्य पर केंद्रित एक दर्जन फिल्में बना चुके हैं। स्टेप बाय स्टेप पुस्तक श्रृंखला के संपादक हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं की संपादकीय समिति में हैं।

शोध और व्याख्यान

शोध की बात करें तो 125 से अधिक शोध पत्र एवं 300 से अधिक अध्याय प्रकाशित हैं। 500 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं। भारत और विदेशों में 1000 से अधिक अतिथि व्याख्यान दिए हैं। 356 कीनोट लेक्चरर्स और 62 ऑरेशन हैं।

फॉग्सी और सामाजिक योगदान

वर्ष 2008 में भारत के स्त्री रोग विशेषज्ञों के सबसे बड़े संगठन फ़ोग्सी यानी फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक और गाइनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। संगठन के सदस्यों के लिए नया धर्म चलाया उसका नाम है फॉगसिनिज्म। महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए देश के चारों कोनों से एक यात्रा निकाली जो गांव-गांव गई। देश में सर्वप्रथम डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी ने ही नारा दिया था, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। आज यह नारा देश के हर व्यक्ति की जिह्वा पर है। अब उन्होंने नया नारा दिया है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बेटा समझाओ। यह भी प्रसिद्ध होगा।

स्मृति एनजीओ और सामाजिक कार्य

स्मृति एनजीओ के माध्यम से 6000 बेटियों के स्कूल की फीस भरते हैं। कोई भी बेटी इनके पास आ जाए तो उसकी मदद होनी ही है।

चिकित्सा में इतिहास

डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज में उस समय इतिहास रच दिया जब स्त्री रोग विशेषज्ञ बनने की ठानी। उस समय कोई सोच भी नहीं सकता था कि पुरुष डॉक्टर स्त्री रोग विशेषज्ञ हो सकता है।

नई तकनीक और ख्याति

चिकित्सा विज्ञान में प्रत्येक नई टेक्नोलॉजी सीखने और शोध करने की ललक ने देश-विदेश में ख्याति दिलाई है। यह क्रम आज भी जारी है।

शायर एहतिशाम अख्तर का एक शेर है—
शहर के अंधेरे को एक चराग काफी है
सौ चराग जलते हैं एक चराग जलने से

कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी हैं अपने हर दिल अजीज डॉक्टर नरेंद्र मल्होत्रा जी। वे ऐसे प्रकाशपुंज हैं जिनसे अनेक चिकित्सक और अनेक संस्थाएं प्रकाशमान हैं।

प्रमुख पद और जिम्मेदारियाँ

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज नई दिल्ली, जेएनएमसी एएमयू अलीगढ और एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर के सलाहकार हैं।
प्रबंध निदेशक, ग्लोबल रेनबो हेल्थकेयर (Ujala-Cygnus-Rainbow Hospital)
निदेशक, ART Rainbow IVF
निदेशक, FOGSI स्मृति Manyata CSE
उपाध्यक्ष, The Society of Ovarian Rejuvenation
निदेशक, प्रोजेक्ट पॉजिटिव हेल्थ, रोटरी जिला 3110
निदेशक, अंतरराष्ट्रीय संबंध SAFOG
राष्ट्रीय निदेशक, Ian Donald School of USG
प्रोफेसर, Sarajevo School of Science and Technology, क्रोएशिया
प्रोफेसर, Dubrovnik International University, क्रोएशिया
प्रोफेसर, भारतीय चिकित्सा संघ (IMA)
पूर्व उपाध्यक्ष, SAFOG & WAPM
पूर्व अध्यक्ष, Rotary Club Agra Taj City
पूर्व अध्यक्ष, ISAR / ISPAT / IFUMB / FOGSI / AOGS / ICMU (Dean) / InSARG

पुरस्कार और सम्मान

पुरस्कार तो इतने हैं कि किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है। इनकी उपलब्धियों की सूची इतनी लंबी है कि यदि मैं केवल पुरस्कारों के नाम ही पढ़ दूँ तो एक लंबा वक्त बीत जाएगा। Corona Warrior Award, Dr. Thomas Chandy Memorial Oration Award, Agra Prahri Samman, Manyata Beton Holders Award, Dhanwantri Award, Achievers of India Award, GOGS Omtion Award, Hon FRCOG, D.C. Dutta Award (लगातार तीन वर्षों तक), Gyan P. Lal Award, Man of the Year Award, Best Citizens of India Award, Health Icon Award… यह सब केवल ट्रॉफियाँ या मेडल नहीं हैं, यह उनकी मेहनत, उनकी करुणा और उनके कर्म का आईना हैं।

कहावत है—
“सम्मान दिए नहीं जाते, अर्जित किए जाते हैं।”

डॉ. मल्होत्रा जी वह व्यक्तित्व हैं जिनके दरवाज़े पर सम्मान स्वयं दस्तक देते हैं।

पारिवारिक जीवन

पर मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि डॉ. मल्होत्रा जी को केवल पुरस्कारों के आधार पर मत आँकिए। वे केवल एक चिकित्सक नहीं, बल्कि पत्नीव्रता पति, शानदार पिता, यारों के यार और दिलदार इंसान हैं। शनिवार और रविवार उनके जीवन में पावन पर्व की तरह होते हैं—परिवार, परिवार और केवल परिवार। उनके जीवन हमें यह सिखाता है कि सफलता का अर्थ परिवार से दूरी नहीं, बल्कि संतुलन है।

किसी शायर ने क्या खूब कहा है—
“घर को सजाने वाले ही दुनिया सजाते हैं,
जो अपनों को भूलते हैं वो कुछ नहीं पाते हैं।”

समय प्रबंधन और आत्मकथा

उन्होंने अपने जीवन का एक-एक मिनट संभाल कर रखा हुआ है। वे अस्तव्यस्त नहीं, व्यस्त हैं और इसी कारण उनके पास हर व्यक्ति के लिए पर्याप्त समय है।

डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी के जीवन में 2:00 a.m. यानी सुबह के 2:00 बजे का बड़ा महत्व है। उन्होंने मेरे आग्रह पर अपनी आत्मकथा भी प्रकाशित की है इसका शीर्षक है एनएम @ 2:00 a.m.। अगला कोई कार्यक्रम 2:00 a.m पर हो तो पुस्तक में एक और अध्याय जुड़ जाएगा।

डॉ. जयदीप मल्होत्रा

मैं पूछता हूँ कि क्या कोई एक व्यक्ति इतने सारे काम कर सकता है? उत्तर है हाँ अगर साथ में डॉक्टर जयदीप जी जैसी पतिव्रता पत्नी हो। डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी की सफलता और अक्षय ऊर्जा का रहस्य डॉक्टर जयदीप जी हैं। डॉ. जयदीप जी केवल उनकी जीवनसंगिनी ही नहीं, बल्कि उनकी प्रेयसी, प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत भी हैं। उन दोनों की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। मैं कहूँ कि ये आधुनिक लैला–मजनूँ हैं, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनके अजब प्रेम की गजब कहानी पुस्तक में पढ़ेंगे तो आप भी कहेंगे, काश मैं भी डॉ. जयदीप होता?

मुझे तुलसीदास जी की यह पंक्ति याद आती है—
“जहाँ सुमति तहाँ संपत्ति नाना।”

सुबुद्धि होती है, वहाँ संपन्नता, सफलता और समृद्धि अपने आप चली आती है।

जीवन दर्शन

एतरेय ब्राह्मण के खंड 3 अध्याय 3 में कहा गया है:
कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन ।।
चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति ।

अर्थात, शयन की अवस्था कलियुग, जाग गए तो द्वापर युग, उठकर खड़े हो गए तो त्रेता और क्रियाशील होना कृतयुग (सतयुग) के समान है। अतः चलते रहो, चलते रहो, चलते रहो।

अर्थात—जो शयन करता है वह कलियुग में है, जो जाग जाता है वह द्वापर में है, जो उठ खड़ा होता है वह त्रेता में है और जो सक्रिय होकर कर्म करता है, वही सतयुग को प्राप्त करता है। और यही मंत्र है डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा जी के जीवन का।

वे कहते हैं—
“मुझे जीना है समाज के लिए, देश के लिए।”

उनकी यही संवेदना उन्हें महान बनाती है। वे केवल मरीज नहीं देखते, वे इंसान देखते हैं। वे केवल शरीर नहीं बचाते, बल्कि आत्मविश्वास और आशा भी लौटाते हैं।

ग़ालिब का शेर

ग़ालिब का शेर याद आता है—
“हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”

लेकिन डॉ. मल्होत्रा जी ने अपने अरमानों को कर्म में बदलकर हर दिन नया इतिहास रचा है।

महान विभूति

इसीलिए डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा कहते हैं कि मुझे जीना है, समाज के लिए, देश के लिए। ऐसी महान विभूति का परिचय देना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

डॉ. मधु भारद्वाज के लिए

और अंत में चार पंक्तियां हमेशा अपनी मधुर वाणी से मधु बरसाने वाली डॉक्टर मधु भारद्वाज जी के लिए:
मुझे अगर इश्क का अरमान होता
मेरे घर मीर का दीवान होता
तेरी महफिल में आकर सोचता हूँ
न आता तो बहुत नुकसान होता।

सम्मान समारोह

(16 सितंबर 2025 को डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा को आगरा विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर स्थित सेठ पदमचंद जैन प्रबंध संस्थान में डॉक्टर वेद भारद्वाज सम्मान से अलंकृत किया गया। इस दौरान दिया गया परिचय।)

Dr. Bhanu Pratap Singh