veer bal diwas

गुरु गोविन्द सिंह के प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी की घोषणा, चार साहिबजादों के नाम पर 26 दिसम्बर को ‘ वीर बाल दिवस’, प्रो. केएस राना ने कहा- चार साल से प्रयासरत था

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New Delhi, Capital of India. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु गोविन्द सिंह के प्रकाश पर्व पर उनके चार साहिबजादों के नाम पर 26 दिसम्बर को ‘ वीर बाल दिवस’ मनाने की घोषणा की है। सिख समाज यह मांग लम्बे समय से कर रहा था। इस संबंध में 31 दिसम्बर को फेसबुक पर एक पोस्ट मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केएस राना ने डाली थी। घोषणा होने पर उन्होंने प्रधानमंत्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है। साहिबजादा फतेह सिंह (12 December 1699 – 26 December 1705)  और साहिबजादा जोरावर सिंह 28 November 1696 – 26 December 1705) को मुस्लिम शासक ने दीवार में जिन्दा चिनवा दिया था लेकिन उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाबी भाषा और अंग्रेजी ट्वीट किए हैं। यहां हम ट्वीट जस के तस प्रस्तुत कर रहे हैं-

Greetings on the Parkash Purab of Sri Guru Gobind Singh Ji. His life and message give strength to millions of people. I will always cherish the fact that our Government got the opportunity to mark his 350th Parkash Utsav. Sharing some glimpses from my visit to Patna at that time.

The bravery and ideals of Mata Gujri, Sri Guru Gobind Singh Ji and the 4 Sahibzades give strength to millions of people. They never bowed to injustice. They envisioned a world that is inclusive and harmonious. It is the need of the hour for more people to know about them.

‘Veer Baal Diwas’ will be on the same day Sahibzada Zorawar Singh Ji and Sahibzada Fateh Singh Ji attained martyrdom after being sealed alive in a wall. These two greats preferred death instead of deviating from the noble principles of Dharma.

22 dec से 27 Dec के बीच अपने 4 बेटे देश और धर्म की खातिर गुरु गोविंद सिंह ने वारे । 20 Dec. 1704 गुरु गोबिंद सिंह जी परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ निकल पड़े थे। उस रात भयंकर सर्दी थी। बारिश हो रही थी। सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया। बारिश के कारण नदी में उफान था। कई सिख शहीद हो गए। कुछ नदी में ही बह गए। इस अफरा-तफरी में परिवार बिछुड़ गया। माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए। दोनों बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ थे। उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया। अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे। फिर भी शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया। अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में 2nd Battle Of Chamkaur Sahib के नाम से जाना जाता है। उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए।

उधर दोनों छोटे साहिबजादे जो 20 की रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुर्जरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए। सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नहीं तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा। दोनों साहिबजादों ने हँसते-हँसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नहीं छोड़ा। गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 dec से 27 Dec के बीच अपने 4 बेटे देश और धर्म की खातिर वार दिए। यह महात्याग है। माता गूजरी ने दोनों बच्चों के साथ ठंडी रातें सरहिन्द के किले में ठिठुरते हुए गुजार दीं।

बहुत सालों तक जब तक कि पंजाब के लोगों पर आधुनिकता का बुखार नहीं चढ़ा था

ये एक सप्ताह यानि कि 20 Dec से 27 Dec तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे। नई पीढ़ी एवं देश के कर्णधारों ने तो गुरु साहब की इस कुर्बानी को समझा भी नहीं वरना “बाल दिवस“ इनके नाम मनाना चाहिए नेहरू के नाम नहीं।

 

मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केएस राना ने बताया कि ने ट्विटर पर लिखा है- प्रधानमंत्री @NarendraModi जी से हम दो साल से गुरु गोविंद सिंह जी के ४ साहबजादोंके नाम पर बाल दिवस मनाने हेतु निर्णय लेने का अनुरोध कर रहे थे। आज ‘वीर बाल दिवस’ मनाने के मोदी जी के निर्णय से देश अभिभूत हैं। धर्म रक्षक, राष्ट्र भक्तों को सम्मान मिला। उनकी राष्ट्रभक्ति से न सिर्फ आज करोड़ों बच्चे प्रेरणा लेकर राष्ट्रसेवा में अपना योगदान दे पाएँगे, आगे वाली पीढ़ियों तक उनका बलिदान याद किया जाएगा। इसके लिए मोदी जी का हार्दिक अभिनंदन।

डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ने प्रतिक्रिया दी है– समाज तो हर समय ही आसानी से जीने की रास्ता ढूंढता है। जिस योद्धा ने अपने चार पुत्रों का बलिदान किया उस समय का भी पंजाबी समाज उनसे नाराज हो गया था और गुरु गोविंद सिंह को पंजाब छोड़ना पड़ा था। मृत्यु उनकी नांदेड़ में हुई जो कि पंजाब से लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर दूर है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा जहां पर भूलने की प्रवृत्ति इतनी ज्यादा है दिल्ली में शीशगंज गुरुद्वारा प्रमाण है। गुरु तेग बहादुर और भाई मतीदास की आरे से चीरे जाने के बावजूद औरंगजेब रोड दिल्ली में बनी। उस औरंगजेब रोड का नाम से बदला गया तब लंबे समय राज्य करने वाली राष्ट्रीय पार्टी का प्रवक्ता टेलीविजन पर ऐसे रो रहा था जैसे औरंगजेब उसका बाप था।

Dr. Bhanu Pratap Singh