आखिर PM मोदी की कम होती लोकप्रियता का कारण क्या है?

हमने पिछले डेढ़ दशक के दौरान भारतीय राजनीति को कई परिदृश्यों में बदलते देखा है। कैसे कुछ बेहतर सोशल मीडिया कैंपेन्स के दम पर एक राज्य तक सीमित राजनेता राष्ट्रीय चेहरा बन गया और सत्ता के केंद्र में स्थापित हो गया। जाहिर है बात पीएम मोदी की हो रही है जिन्होंने लगातार तीन बार न […]

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आखिर क्यों कम हो रही है PM मोदी की लोकप्रियता?

हमने पिछले डेढ़ दशक के दौरान भारतीय राजनीति को कई परिदृश्यों में बदलते देखा है। कैसे कुछ बेहतर सोशल मीडिया कैंपेन्स के दम पर एक राज्य तक सीमित राजनेता राष्ट्रीय चेहरा बन गया और सत्ता के केंद्र में स्थापित हो गया। जाहिर है बात पीएम मोदी की हो रही है जिन्होंने लगातार तीन बार न […]

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कांवड़िये तो बहाना है, उन्मादी भीड़ को हिंसक और बर्बर बनाना है!

बादल सरोज गुजरे 35-40 वर्षों, विशेषकर 1992 के बाद के भारत ने जो गंवाया है, उनमे से एक तीज-त्यौहार, यहाँ तक कि धार्मिक पर्व के उत्साह, उमंग से भरपूर उत्सवों से महरूम हो जाना है। ये सब ऐसे अवसर हुआ करते थे, जो चोटी और दाढ़ी और सलीब के फर्क को पीछे छोडकर हर चेहरे […]

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क्या नागरिक बच्चे होते हैं कि न्यायपालिका उन्हें देशभक्ति सिखायेगी?

यह वर्ष 1763 की बात है, जब जेनेवा की धार्मिक सभा ने रॉबर्ट कोवेल नामक व्यक्ति को नाजायज़ संतान के पिता होने के कारण घुटने टेककर फटकार सुनने का आदेश दिया। कोवेल ने घुटने टेकने से इनकार कर दिया और मदद के लिए वह वोल्टेयर के पास गया। वोल्टेयर उस समय ज्ञानोदय के अग्रणी प्रकाश […]

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लव जिहाद: न्यायालय की चेतावनी और समाज का आईना

डॉ सत्यवान सौरभ “लव जिहाद” — एक ऐसा शब्द जो न तो भारतीय क़ानून में परिभाषित है, न संविधान में मान्यता प्राप्त, लेकिन फिर भी राजनीतिक मंचों, टीवी डिबेट्स और सड़कों पर सुनाई देने लगा है। अब यह बहस हरियाणा तक भी पहुँच चुकी है, और अदालतों तक भी। हाल ही में हरियाणा के एक […]

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उधम सिंह सरदार: एक गोली, सौ सालों की गूंज

प्रियंका सौरभ उधम सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक विचार थे—संयम, संकल्प और सत्य का प्रतीक। जलियांवाला बाग़ के नरसंहार का प्रत्यक्षदर्शी यह वीर 21 वर्षों तक चुपचाप अपने मिशन की तैयारी करता रहा और लंदन जाकर ओ’डायर को गोली मारकर भारत का प्रतिशोध पूरा किया। उनकी चुप्पी न्याय की गर्जना थी, जो […]

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100 किलोमीटर दूर की परीक्षा: क्या अभ्यर्थी की ज़िंदगी इतनी सस्ती है?

“चुनाव में स्टाफ जाता है, परीक्षा में छात्र क्यों? रोज़गार की दौड़ में रास्ते ही कठिन क्यों?” सड़क हादसों में गई युवाओं की जान, कौन लेगा जिम्मेदारी?नौकरी की तलाश में जिंदगी हार रहे बेरोजगार। परीक्षार्थियों का विस्थापन: CET के नाम पर हरियाणा में प्रशासनिक असंवेदनशीलता और मौतें डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा में आयोजित CET परीक्षा […]

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महाराजा संपादक: जब बंद हो जाए चौपाल और लगने लगे दरबार…फिर किसके लिए हैं अखबार?

डॉ सत्यवान सौरभ जब लोकतंत्र का प्रहरी—संपादक—जनता से संवाद बंद कर दे और सत्ता का दरबारी बन जाए, तब पत्रकारिता दम तोड़ने लगती है। आज बड़े संपादक आम आदमी से कट चुके हैं, गाँव-कस्बों की आवाज़ें अखबारों में गुम हैं। संवाद की जगह प्रचार ने ले ली है। सत्ता और पूँजी के एजेंडे चलाए जा […]

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स्क्रीन का शिकंजा: ऑस्ट्रेलिया के फैसले से दुनिया के देशों को सबक लेने की जरूरत

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार ऑस्ट्रेलिया ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए यूट्यूब समेत सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगाने का साहसिक फैसला लिया है। यह कदम बच्चों को ऑनलाइन दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए उठाया गया है। भारत जैसे देशों में, जहां डिजिटल लत […]

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आख़िर ये कैसे जानेंगे दर्द: सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ते राजनेताओं के बच्चे

डॉ सत्यवान सौरभ जब तक विधायक, मंत्री और अफसरों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते रहेंगे, तब तक सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी। अनुभव से नीति बनती है, और सत्ता के पास उस अनुभव का अभाव है। स्कूलों में छत गिरने से मासूमों की मौत, किताबों की कमी, अधूरे शौचालय — ये सब आम […]

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