बड़ा सवाल: “बचपन को अख़बारों में जगह क्यों नहीं?”

प्रियंका सौरभ रविवार की सुबह बेटे प्रज्ञान को गोद में लेकर अख़बार से कोई रोचक बाल-कहानी पढ़ाने की इच्छा अधूरी रह गई। किसी भी प्रमुख अख़बार में बच्चों के लिए एक भी रचना नहीं थी। समाज बच्चों को पढ़ने के लिए कहता है, पर उन्हें पढ़ने को क्या देता है? यह संपादकीय हमारे समाचार पत्रों […]

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सावन मनभावन: भीगते मौसम में साहित्य और संवेदना की हरियाली

डॉ सत्यवान सौरभ सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि भारतीय जीवन, साहित्य और संस्कृति में एक गहरी आत्मिक अनुभूति है। यह मौसम न केवल धरती को हरा करता है, बल्कि मन को भी तर करता है। लोकगीतों, झूले, तीज और कविता के माध्यम से सावन स्त्रियों की अभिव्यक्ति, प्रेम की प्रतीक्षा और विरह की पीड़ा […]

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“कृत्रिम बुद्धिमत्ता: नवाचार की उड़ान या बौद्धिक चोरी का यंत्र?”

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आज नई रचनात्मकता का माध्यम बन चुकी है, पर यह बहस का विषय है कि क्या यह नवाचार, रचनाकारों की मेहनत की चोरी पर टिका है? अमेरिका में अदालतों ने एआई द्वारा ‘सीखी गई’ सामग्री को उचित प्रयोग माना, पर रचनाकार असंतुष्ट हैं। भारत में […]

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पुस्तक समीक्षा: “बोल म्हारी माटी”- माटी री बोली में घुली कविता री आत्मा

हरियाणा रा नाम आवै तो मन मैं दूध-दही, खेत-खलियाण, पहलवान, चौपाल, बागड़ी-जेबड़ी बोली अर सादगी भर्यी जिन्दगी सै। पर इस हरियाणा री धरती तले जड़ी माटी में एक आंधरी बात सै – संवेदना। डॉ. सत्यवान सौरभ की किताब “बोल म्हारी माटी” इस संवेदना नै कविता में ढाल के हमारे ताई ल्याई सै। ई बही केवल […]

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ई-वोटिंग: लोकतंत्र की मजबूती या तकनीकी जटिलता?

डॉ सत्यवान सौरभ ई-वोटिंग मतदान प्रक्रिया को सरल, सुलभ और व्यापक बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। बिहार के प्रयोग से स्पष्ट है कि मोबाइल ऐप के माध्यम से मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी संभव है। हालांकि, तकनीकी पहुंच, साइबर सुरक्षा, मतदाता की पहचान और गोपनीयता जैसी चुनौतियाँ इस प्रणाली के समक्ष […]

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क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं, पढ़िए पंडित प्रमोद गिरी का आंखें खोल देने वाला विवेचन

क्या आप अपने गोत्र की असली शक्ति को जानते हैं, यह कोई परंपरा नहीं है। कोई अंधविश्वास नहीं है। यह आपका प्राचीन कोड है। यह पूरा लेख पढ़िए — मानो आपका अतीत इसी पर टिका हो। 1. गोत्र आपका उपनाम नहीं है। यह आपकी आध्यात्मिक डीएनए है। पता है सबसे अजीब क्या है? अधिकतर लोग […]

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चमार और जाटव: पहचान, सम्मान और जाति प्रमाण पत्र में बदलाव की जरूरत, जिस शब्द से जेल उसी के नाम पर सर्टिफिकेट क्यों?

उपेंद्र सिंह जाटव अध्यक्ष, भारतीय जाटव समाज भारत में दलित समुदायों में से एक प्रमुख समुदाय, चमार, का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह समुदाय परंपरागत रूप से चमड़े के काम से संबंधित रहा है, जिसके कारण इसे सामाजिक भेदभाव और छुआछूत का सामना करना पड़ा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, […]

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ज़ीरो डोज़ बच्चे: टीकाकरण में छूटे हुए भारत की तस्वीर

डॉ. सत्यवान सौरभ, स्वतंत्र लेखक व स्तंभकार भारत में 2023 में 1.44 मिलियन बच्चे ‘ज़ीरो डोज़’ श्रेणी में थे, जिनमें अधिकांश गरीब, अशिक्षित, जनजातीय, मुस्लिम और प्रवासी समुदायों से आते हैं। भूगोलिक अवरोध, सामाजिक हिचकिचाहट, शहरी झुग्गियों में अव्यवस्थित शासन और निगरानी की कमी प्रमुख चुनौतियाँ हैं। मिशन इंद्रधनुष जैसी योजनाएँ सीमित प्रभावी रही हैं। […]

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भारतीय किशोर लेखक और वैज्ञानिक ने एलन मस्क पर लिखी प्रेरक जीवनी

मुंबई (अनिल बेदाग) 18 वर्षीय विवान कारुलकर, जो ‘नये भारत’ के एक प्रतिभाशाली और सफल किशोर लेखक व वैज्ञानिक हैं, ने अपनी तीसरी पुस्तक “इलोन मस्क: द मैन हू बेंड्स रियलिटी” लिखी है। यह पुस्तक विश्वविख्यात उद्यमी और टेक्नोलॉजी आइकन एलन मस्क के जीवन पर आधारित एक प्रेरणादायक जीवनी है। विवान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय […]

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साहित्य का मंच या शिकार की मंडी? : नई लेखिका आई है — और मंडी के गिद्ध जाग उठे हैं

नई लेखिकाओं के उभार के साथ-साथ जिस तरह साहित्यिक मंडियों में उनकी रचनात्मकता की बजाय उनकी देह, उम्र और मुस्कान का सौदा होता है — यह एक गहरी और शर्मनाक सच्चाई है। मंच, आलोचना, भूमिका, सम्मान – सब कुछ एक जाल बन जाता है। यह संपादकीय स्त्री लेखन के नाम पर चल रही पाखंडी व्यवस्था […]

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