राजामंडी स्थित आर्य समाज मंदिर में आयोजित बैठक में स्वामी रामभद्राचार्य के कथन का किया विरोध, लीगल नोटिस व विरोध पत्र भेजा
आगरा। स्वामी रामभद्राचार्य आर्यजनों से मांफी मांगे या शास्त्रार्थ करें। बिना किसी प्रमाण के महर्षि दयानंद के बारे में टिप्पणी करना अनूचित है। आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द रसस्वती ने 30 ग्रंथ लिखे हैं। जिसमें कहीं नहीं लिखा कि रामायाण और महाभारत काल्पनिक हैं। उन्होंने हमेशा श्रीराम और श्रीकृष्ण के चरित्र का अनुसरण करने की प्रेरणा दी। परन्तु स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा कहे गए कथन कि महर्षि दयानन्द ने महाभारत और रामायण को काल्पनिक कहकर भूल की, जिससे समाज की हानि हुई, बिल्कुल निराधार और असत्य है।
राजामंडी स्थित आर्य समाज मंदिर में इस संदर्भ में बैठक आयोजित की गई। जिसमें आगरा जनपद की समस्त आर्य समाजों, आर्य संस्थानों व आर्य जनों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और स्वामी रामभद्राचार्य के कथन का विरोध किया गया।
राष्ट्रीय प्रवक्ता आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री, आर्यवीर दल आगरा के संचालक वीरेन्द्र कुमार कनवर ने कहा आगे की रणनीति तैयार करते हुआ कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य मांफी मांगे या शास्त्रार्थ करें। अन्यथा उनकी कथाओं में जाकर आर्यजन जवाब मांगने खुद पहुंचेंगे। आगरा में उनके खिलाफ अभियोग पंजीकृत कराया जाएगा। स्वामी रामभद्राचार्य को विरोध पत्र व लीगल नोटिस भी भेजा गया है।
आर्यजनों ने कहा कि कृपया स्वामी रामभद्राचार्य लिखित स्पष्टीकरण दे कि महर्षि दयानन्द ने अपने कौन से ग्रन्थ महाभारत और रामायण को काल्पनिक बताया है। महर्षि दयानन्द ने अपने कालजयी ग्रन्थ “सत्यार्थ प्रकाश’’ के तृतीय समुल्लास में वाल्मीकि रामायण व महाभारत को पढ़ने के लिए स्पष्ट लिखा है। तीसरे, छठे तथा ग्यारहवें समुल्लास में भी उन्होंने महाभारत तथा रामायण के अनेक पात्रों का उल्लेख किया है।
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