डॉ. भानु प्रताप सिंह
Agra, Uttar Pradesh, India. लघु उद्योग भारती की स्थापना 1994 में हुई थी। सम्पूर्ण देश के 450 से अधिक जिलों में सम्पर्क शाखाएं विभिन्न जिलों एवं औद्योगिक क्षेत्रों मे कार्यरत हैं। लघु उद्योग भारती की भारत के सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में प्रादेशिक इकाइयां है। इन सभी इकाइयों का प्रतिनिधित्व करने के लिए लघु उद्योग भारती की राष्ट्रीय कार्यकारिणी है जिसका पंजीकृत कार्यालय नागपुर में व प्रशासनिक कार्यालय दिल्ली में अवस्थित है। लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय मार्गदर्शक श्री सांकलचन्द बागरेचा (सीए), राष्ट्रीय संगठनमंत्री श्री प्रकाशचन्द, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बलदेवभाई प्रजापति तथा राष्ट्रीय महामंत्री श्री गोविन्द लेले है। लघु उद्योग भारती के सुझाव को स्वीकार करते हुए देश में स्वतंत्र लघु उद्योग मंत्रालय का गठन श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुआ। वसुंधराराजे देश की पहली लघु उद्योगमं त्री बनी थीं। लघु उद्योग भारती के संयुक्त महामंत्री, जाने-माने उद्यमी और आगरा निवासी राकेश गर्ग हैं। श्री गर्ग उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम के उपाध्यक्ष भी हैं। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा है। देश में लघु उद्योगों की स्थिति पर हमने उनसे लम्बी बातचीत की। वे कई योजनाओं पर काम कर रहे हैं। कहते हैं कि वह दिन आने वाला है जब हम चीन क्या अमेरिका को भी पीछे छोड़ देंगे। पढ़िए हमारे प्रश्न और श्री राकेश गर्ग के उत्तर-
डॉ. भानु प्रताप सिंहः लघु उद्योग भारती ने कोई खास काम किया है क्या?
राकेश गर्गः लघु उद्योग भारती लघु उद्योगों का एक मात्र संगठन है जो देश के हर राज्य में है। लघु उद्योग भारती ने पिछले कई वर्षों में अनेक कार्य किए हैं। पहले उद्योग मंत्रालय एक ही हुआ करता था। इस कारण बड़े उद्योगों का बोलबाला था। लघु उद्योगों की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दब जाया करती था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो हमने पहली बार उनके सामने मांग रखी। हमारी मांग को को स्वीकार करते हुए लघु उद्योग मंत्रालय स्थापित किया। पहली मंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया बनीं। तब से लघु उद्योगों को महत्व मिलने लगा। उद्योगों से संबंधित विभाग श्रम या वित्त या अन्य में हमारा प्रतिनिधित्व रहता है। हमने जीएसटी, प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर में अनेक संशोधन भी कराए हैं। हम सकारात्मक सुझाव देते रहे हैं। पूरे देश में लघु उद्योग भारती लघु उद्योगों की आवाज है। हमारी स्वीकार्यता भी है।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः हर कोई नौकरी मांग रहा है, आप क्या कहते हैं?
राकेश गर्गः हमने यह अनुभव किया है कि वर्तमान में नई पीढ़ी पारंपरिक पारिवारिक उद्यम न चलाकर कुछ और ही करना चहती है। बच्चे नौकरी की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अगर नौकरी देने वाले नहीं होंगे तो कहां से आएंगी इतनी नौकरियां। लघु उद्योग भारती ने इस दिशा में कई काम किए हैं।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः एक-दो काम बता सकते हैं क्या?
राकेश गर्गः गांवों में पारंपरिक उद्योग हुआ करते थे जैसे- कुम्भकारी, केशकर्तन, बढ़ई, चर्मकार, खांडसारी आदि। ये धीरे-धीरे बंद हो गए हैं क्योंकि शहर से माल जाने लगा है। सरकार इन उद्योगों के लिए योजना ला रही है लेकिन इनकी जानकारी कुटीर उद्योगों को नहीं है। इसलिए समय आ गया है कि अब कुटीर उद्योगों के लिए नया मंत्रालय बने। इनकी नीतियां अलग बनें। संबिंधित व्यक्तियों तक प्रचार-प्रसार हों। स्वरोजगार बढ़ेगा, तभी देश आगे बढ़ेगा। स्वरोजगार से ही आत्मनिर्भरता आती है।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः सरकार को क्या सुझाव दिया है आपने?
राकेश गर्गः हमने यही कहा है कि कुटीर उद्योगों के लिए नीतियां अलग बनाई जाएं। वित्तीय समस्याएं आती हैं। बैंक ऋण नहीं देते हैं। बैंक सिबिल (CIBIL क्रेडिट इन्फॉर्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड ) देखती हैं। नए व्यक्ति पर सिबिल कहां से आएगा। हमने कहा है कि स्थानीय उद्योगों के संगठन या चार प्रमुख व्यक्ति लिखकर दें तो सिबिल की कोई आवश्यकता नहीं है। हम यह सुझाव लघु उद्योगों के लिए भी देने जा रहे हैं ताकि बैंक को ऋण देने में कोई समस्या न रहे।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः लोग स्वरोजगार या उद्योग लगाने के प्रति आकर्षित कैसे हों?
राकेश गर्गः लघु उद्योग भारती सरकार को सुझाव देने जा रही है कि पाठ्यक्रम में सातवीं से दसवीं कक्षा तक रोजगारपरक शिक्षा दी जाए, स्वरोजगार के प्रति भावना जाग्रत की जाए। हर शहर कोई न कोई स्थानीय उद्योग के लिए प्रसिद्ध होता है। जैसे आगरा में जूता, चेन, हाथरस में हींग, गुलाल, फिरोजाबाद में कांच का उद्योग प्रमुख है। योगी जी ने एक जनपद एक उत्पाद के तहत हर जिले के उद्योग को महत्व दिया है। जिले के ऐसे उत्पाद की जानकारी 7वीं से 10वीं कक्षा तक दी जाए। स्थानीय के साथ-साथ पारंपरिक उद्योगों के बारे में भी जानकारी दी जाए। कृषि प्रधान राष्ट्र है तो खाद्य प्रसंस्करण भी जानकारी दी जाए। नौकरी करने से अच्छा नौकरा देना बहुत बड़ी बात है। नौकरी करके सिर्फ अपना परिवार चलाएंगे लेकिन नौकरी देकर अनेक लोगों का परिवार चलाते हैं। इससे मन को संतोष होता है।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः अच्छी बात है। आगे की कक्षाओं के लिए क्या हो?
राकेश गर्गः 11वीं और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार उद्योगों की प्रायोगिक जानाकरी दी जाए। इसके लिए प्रयोगशाला बने। उद्योगों में बच्चों को ले जाया जाए। स्वरोजगार तो सबके लिए है। होशियार बच्चे उद्योगों को और अच्छा चला सकते हैं। इस संबंध में सरकार से निवेदन के साथ दबाव भी बनाएंगे।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः जो लोग उद्यम चला रहे हैं, उनके लिए कुछ?
राकेश गर्गः उद्यमियों को स्कूलों में बुलाकर परिचय और सम्मान कराया जाए। इस बात को हाईलाइट किया जाए कि वह कितने लोगों को रोजगार दे रहा है और सरकार को कितना कर देता है। सरकार उद्यमियों के कर से ही चलती है। इससे बच्चों को उद्यमी बनने की प्रेरणा मिलेगी।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः उद्योग स्थापना में पहला वास्ता सरकारी अधिकारियों से पड़ता है और वे बिना रिश्वत के काम नहीं करते हैं। इसे कैसे रोकेंगे?
राकेश गर्गः जिस तरह आयकर भरते हैं, इसमें सीए प्रमाणपत्र देता है और उसे मान लिया जाता है। स्क्रूटनी होती है बाद में, जो न्यूनतम हो गई है। इसी प्रकार उद्योग लगाने से पूर्व कोई सीए वित्तीय आवश्यकताओं का आंकलन देता है तो उसे मान लिया जाए। प्रूदषण के संबंध में संबंधित इंजीनियर का प्रमाणपत्र अनुमन्य हो। विभाग में उद्यमियों का जाना न्यूनतम हो। स्वघोषणा उद्यमी का अधिकार है। उद्योगों के लिए वन विंडो सिस्टम है, लेकिन इसका और सरलीकरण किया जाएगा।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः लघु उद्योग भारती को भाजपा का समर्थक माना जाता है और अनेक राज्यों में भाजपा की सरकार है तो आपके सुझाव कब तक लागू हो जाएंगे?
राकेश गर्गः हमारा प्रयास है कि शीघ्रातिशीघ्र लागू हों। दो-तीन माह के अंदर सरकार को अवगत करा देंगे। हम निश्चित रूप से प्रयास करेंगे कि कम से कम समय में लागू हों।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः यूपी में योगी सरकार के आने के बाद लघु उद्योगों को राहत मिली है क्या?
राकेश गर्गः निश्चित रूप से राहत मिली है। इलेक्ट्रीसिटी ड्यूटी हटाई है। एक जनपद एक उत्पाद के तहत नए उद्योग पंजीकृत हुए हैं।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः सबसे बड़ी समस्या यह है कि तमाम उत्पाद आयात करने पड़ते हैं। इसे कम करने के लिए कोई योजना है क्या?
राकेश गर्गः कॉमर्स मंत्रालय ने 400 उत्पादों की सूची जारी की है जिनका भारत में आयात होता है। आयात का विकल्प कैसे बने, इस बारे में भारत सरकार को सुझाव देने जा रहे हैं। हमारा कहना है कि सरकार ने जिन उत्पादों की सूची बनाई है, उसका 2डी और 3डी मॉडल में फोटोग्राफ दे, उसकी तकनीकी जानकारी दे, उत्पाद किस क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, किन देशों से आता है और भारत में किस मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है, आदि सूचना उपलब्ध कराए। प्रमुख औद्योगिक शहरों में इन उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाए, फिर हम स्वयं तैयार कर लेंगे।
डॉ. भानु प्रताप सिंहः यह कैसे संभव है?
राकेश गर्गः हमारा भारत के तकनीकी संस्था जैसे आईआईटी से परामर्श हुआ है। उनसे कहा है कि आयात होने वाले उत्पादों को तैयार करने में तकनीकी मदद दें। इन सब चीजों से चीन को मात दे सकते हैं। उद्योगों के लिए जिन चीजों की आवश्यकता थी, वो मिलने लगी हैं। चीन क्या, अमेरिका को भी पीछे छोड़ सकते हैं। हमारे अंदर ये कुव्वत है। हमारे डीएनए में उद्योग है।
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