डॉ भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा में मस्जिद नहर वाली के इमाम मुहम्मद इक़बाल ने जुमा के ख़ुत्बे में मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा कि रमज़ान की रूहानियत और नेक अमल को केवल इस पाक महीने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं।
रमज़ान के बाद भी कायम रखें अल्लाह की इबादत
इमाम इक़बाल ने कहा, “जिस तरह रमज़ान में हमने अल्लाह के हुक्मों का पालन किया—नमाज़ की पाबंदी की, कुरआन की तिलावत की, लोगों के साथ हमदर्दी दिखाई—उसी तरह रमज़ान के बाद भी इन चीज़ों को जारी रखें।” उन्होंने आगाह किया कि अगर रमज़ान के बाद इंसान फिर से पहले वाली ज़िंदगी की तरफ लौट जाए, तो इसका मतलब होगा कि उसने रमज़ान से कुछ नहीं सीखा और इस बरकत वाले महीने को बर्बाद कर दिया।
नमाज़ और कुरआन केवल रमज़ान तक सीमित नहीं
इमाम साहब ने स्पष्ट किया कि “जो नमाज़ रमज़ान में फ़र्ज़ थी, वह रमज़ान के बाद भी फ़र्ज़ है।” उन्होंने कहा कि कुरआन, जो अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल किया गया है, सिर्फ़ रमज़ान में तिलावत के लिए नहीं, बल्कि क़यामत तक के लिए है।
उन्होंने लोगों को रमज़ान की इबादत और उसके सबक को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लागू करने की ताकीद की।
छूटे हुए रोज़ों को पूरा करें, शव्वाल के छह रोज़ों का सवाब न भूलें
इमाम इक़बाल ने उन मुसलमानों को याद दिलाया, जो बीमारी, सफ़र या किसी मजबूरी की वजह से रमज़ान के रोज़े नहीं रख पाए, वे ईद के बाद जल्द से जल्द उनकी क़ज़ा करें।
इसके साथ ही उन्होंने शव्वाल के छह रोज़ों की अहमियत पर ज़ोर देते हुए सही मुस्लिम की हदीस (2758) का ज़िक्र किया:
“जिसने रमज़ान के रोज़े रखे, फिर शव्वाल के छह रोज़े रखे, तो उसे पूरे साल रोज़े रखने का सवाब मिलेगा।”
उन्होंने अपील की कि मुसलमान इस सुनहरे मौके से फायदा उठाएं और अधिक से अधिक नेकी कमाने की कोशिश करें।
“रमज़ान की बरकत को लापरवाही में न गवा दें”
ख़ुत्बे के अंत में इमाम इक़बाल ने दुआ की:
“अल्लाह हम सब को ज़्यादा से ज़्यादा नेक अमल की तौफ़ीक़ अता फरमाए और रमज़ान की रूहानियत को हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बना दे। आमीन!”
संपादकीय टिप्पणी
रमज़ान का असली सबक: इबादत को आदत बनाएं
रमज़ान का महीना एक इबादत का पर्व ही नहीं, बल्कि एक प्रशिक्षण सत्र है, जो इंसान को सिखाता है कि संयम, आत्मनियंत्रण और भलाई केवल एक महीने की चीज़ नहीं होनी चाहिए, बल्कि हमारी पूरी ज़िंदगी का हिस्सा बननी चाहिए।
मस्जिद नहर वाली के इमाम मुहम्मद इक़बाल ने अपने जुमा के ख़ुत्बे में जिस अहम बात की तरफ़ ध्यान दिलाया, वह हर मुसलमान के लिए सोचने की बात है। रमज़ान में हम पाँच वक्त की नमाज़ की पाबंदी करते हैं, कुरआन की तिलावत में मशगूल रहते हैं, गरीबों-मिस्कीनों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, ग़ीबत और झूठ से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन जैसे ही ईद का चाँद नज़र आता है, क्या हमारा यह जज़्बा भी चाँद के साथ ही डूब जाता है?
इबादत का सिलसिला रमज़ान तक सीमित क्यों?
अगर कोई शख़्स रमज़ान में रोज़ाना कुरआन की तिलावत करता रहा, नमाज़ पढ़ता रहा, झूठ से बचता रहा, लेकिन ईद के बाद अचानक वह पुराने रास्ते पर लौट जाता है, तो उसे सोचना चाहिए कि क्या उसने रमज़ान से कुछ सीखा? क्या रमज़ान उसके लिए सिर्फ़ एक रस्म बनकर रह गया?
इमाम इक़बाल का यह कहना बिल्कुल सही है कि “जो नमाज़ रमज़ान में फ़र्ज़ थी, वह रमज़ान के बाद भी फ़र्ज़ है।” कुरआन पूरे साल के लिए है, सिर्फ़ रमज़ान में पढ़ने के लिए नहीं।
अगर हम रमज़ान के बाद भी उसी इबादत, नेक अमल और अल्लाह के हुक्मों की पाबंदी जारी रखते हैं, तो यही इस पाक महीने की असली कामयाबी है।
शव्वाल के छह रोज़े: सालभर की इबादत का मौका
हदीस के मुताबिक़, “जिसने रमज़ान के रोज़े रखे और उसके बाद शव्वाल के छह रोज़े रखे, उसे पूरे साल रोज़े रखने का सवाब मिलेगा।” यह अल्लाह की एक ख़ास रहमत है, जो हमें सालभर की इबादत करने का सवाब महज़ छह रोज़े रखने से अता होती है।
रमज़ान के बाद भी रोज़े रखने की यह तरबीअत हमें इबादत के सिलसिले को जारी रखने का एक बेहतरीन मौका देती है। अल्लाह का यह इनाम हासिल करने से हम क्यों पीछे हटें?
रमज़ान को रस्म नहीं, ज़िंदगी की असलियत बनाएँ
इमाम साहब ने सही कहा कि अगर रमज़ान के बाद हम फिर से वही ग़फ़लत और लापरवाही वाली ज़िंदगी में लौट गए, तो इसका मतलब यह हुआ कि हमने रमज़ान की असली बरकत को खो दिया।
रमज़ान सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि एक ज़िंदगी संवारने का मौका है। यह हमें सब्र, त्याग, दूसरों की मदद और अल्लाह की इबादत की अहमियत सिखाता है। अगर यह सबक हमें रमज़ान के बाद भी याद रहता है, तो हम वाक़ई इस महीने की रूहानियत को समझने वाले खुशनसीब लोग हैं।
अल्लाह हमें रमज़ान के बाद भी उसकी बरकतों पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे। आमीन!
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