काशी संस्कृत विश्वविद्यालय में अब संस्कृत पढ़ाई जा रही
नई शिक्षा नीति संस्कार, रोजगार और तकनीक से जुड़ी है
मेरा राणा और शिवाजी महान थे, ये क्यों नहीं पढ़ाया जाता
इटली, यूरोप में संस्कृत पर शोध हो रहे लेकिन भारत में नहीं
डॉ. राम ने महामूर्ख सम्मेलन, मंदिर, ब्राह्मण भवन बनवाए
एंड्रूज स्कूल ने बच्चों का भविष्य निखार दिया, पुण्य कार्य हो रहा
साक्षी मान पिता के पथ पर चलने का संकल्पः डॉ. गिरधर शर्मा
डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने कहा है कि काशी में 1500 वर्ष प्राचीन संस्कृत पांडुलिपियां हैं। इससे स्पष्ट है कि कागज की खोज भारत में हुई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अकबर नहीं, मेरा राणा और शिवाजी महान थे। ‘ग’ से गधा पढ़ाने वाली शिक्षा पद्धति को जमकर कोसा। नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि यह संस्कार, रोजगार और तकनीक से जुड़ी हुई है।
श्री उपाध्याय सीएफ एंड्रूज स्कूल, बल्केश्वर में आयोजित ‘कृष्ण दर्शनम्’ कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम डॉ. राम अवतार शर्मा की चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसमें 300 से अधिक विद्यार्थियों ने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन को अभिनय के माध्यम से सजीव किया।
मैकाले शिक्षा पद्धति ने हमें क्या दिया
श्री उपाध्याय ने कहा कि हमें G for Gentleman पढ़ाया गया। जेंटलमैन के रूप में सूट-बूट-टाई में आदमी दिखाया गया। बच्चे ने गांव में अपने पिता-दादा को धोती-कुर्ता-टोपी-गमछा में देखा तो समझ गया कि यह जेंटलमैन नहीं है। इस तरह लॉर्ड मैकाले की शिक्षा ने हमारा स्व बिगाड़ दिया।
ग से गधा ठीक लगता है और ग से गणेश पढ़ाना साम्प्रदायिक हो गया है।
रेन-रेन गो अवे
कम ऑन अनादर डे
लिटिल जॉनी वांट्स प्ले..
ये क्या है? हमारा संस्कार तो सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय है। हमारे यहां कहा गया है-
बरसो राम धड़ाके से
चाहे बुढ़िया मर जाए फाके से
और
मौला पानी दे, पानी दे गुड़धानी दे।
ये भावना सबको सुख देने वाली है।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य
सब चाहते थे कि इस तरह की शिक्षा पद्धित बदली जाए लेकिन किसी के पास ब्ल्यू प्रिंट नहीं था। मेरे नेता (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) ने नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा को संस्कार, रोजगार और तकनीक से जोड़ा है। इसी क्रम में नए पाठ्यक्रम तैयार बनाए जा रहे हैं। संस्कृत भाषा को भी बढ़ावा मिल रहा है। वर्तमान को निखारना और भविष्य का संवारना ही एनईपी का उद्देश्य है।
काशी संस्कृत विश्वविद्यालय में अब संस्कृत पढ़ाई जा रही
काशी के संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत नहीं पढ़ाई जा रही थी, वहां शुभारंभ किया। संस्कृत की पांडुलिपियां संरक्षित की जा रही हैं। मैंने काशी विश्वविद्यालय में पांडुलिपियों को मैग्नीफाइंग ग्लास से पढ़ा। मुझे बताया गया कि ये पांडुलिपियां 1500 वर्ष प्राचीन हैं। अनुमान लगा सकते हैं इन्हें कैसे लिखा होगा?
कागज की खोज
हमें पढ़ाया गया है कि कागज की खोज 1400 वर्ष पूर्व चीन में हुई थी। जब हमारे यहां 1500 वर्ष प्राचीन पांडुलिपियां हैं तो स्पष्ट है कि कागज और स्याही की खोज भारत में ही हुई है। इस पर शोध करने के लिए कहा गया है।
इतिहास को तोड़मरोड़ कर पढ़ाया गया
मंत्री ने कहा कि इतिहास को तोड़ मरोड़कर पढ़ाया जाता रहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य का स्वर्णिम पृष्ठ आगरा से जुड़ा है। ऐसे शिवाजी महाराज की तुलना औरंगजेब से कर रहे हैं। अफसोस है कि आज भी औरंगजेब को महिमामंडित करने वाले हैं। अकबर महान था या नहीं, यह विवाद है लेकिन मेरा राणा, मेरा शिवा महान था, यह क्यों नहीं पढ़ाया जाता है। राष्ट्र और आने वाली नस्लों को मजबूत करना है तो शिक्षा को मजबूत करना होगा।

डॉ. राम अवतार शर्मा के बारे में
उन्होंने कहा कि डॉ. राम अवतार शर्मा ने शिक्षा के जीवंत भवन दिए हैं। देहदान करके वे आधुनिक दधीचि कहलाए। सौभाग्य है कि ऐसे महापुरुष की स्मृति में आयोजित समारोह में भाग ले रहा हूँ।
विलंब से आने पर क्या कहा
श्री योगेंद्र उपाध्याय ने विलम्ब से आने के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, उलाहना देते हैं कि नेता देर से आते हैं लेकिन हमारी मजबूरी कोई नहीं समझता। 100 लोगों को छोड़कर आया हूँ। उन्होंने यह शेर सुनाकर तालियां बटोर लीं
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।
कार्तिक गोस्वामी ने क्या कहा
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राधारमण मंदिर वृंदावन के कार्तिक गोस्वामी जी महाराज ने शिक्षा को संस्कार से जोड़ने की बात कही थी। उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री का ध्यान संस्कृत भाषा पढ़ाए जाने की ओर आकर्षित किया था। सनातन शिक्षा के संवर्धन और संरक्षण की जरूरत है। इटली ओर यूरोप में संस्कृत पर शोध हो रहे हैं लेकिन भारत में नहीं। मानव के साथ मानवता का भी संरक्षण हो।
देहाभिमानी नहीं, देहदानी थे डॉ. राम अवतार शर्मा
कवि शीलेंद्र वशिष्ठ ने डॉ. राम अवतार शर्मा की शान में लिखित भाषण पढ़ते हुए कहा- वे शिक्षा, पर्यावरण, समाज चेतना के अग्रदूत थे। धर्माचरण के उदात्त भावों से आप्लावित थे। देहाभिमानी नहीं, देहदानी थे। समाजहित के कार्यों में स्वयं आगे आकर सहयोग करते थे। चरैवेति चरैवेति के पथक थे। विप्र समाज के लिए ब्राह्मण भवन बनाकर दिया। नागरी प्रचारणी सभा में सूरदास और तुलसीदास की मूर्ति स्थापित की। महामूर्ख सम्मेलन शुरू किया। सूरकुटी में राधा-कृष्ण मंदिर बनवाया। वे देहदान और जल संचय पर कविताएं लिखते थे। डॉ. ऱाम अवतार शर्मा पर कबीरदास का दोहा चरितार्थ होता है-
वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर।
परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर।
ऐसे ही लोग मर के कभी मर नहीं सकते
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. शशि तिवारी ने कहा- ईस्ट-वेस्ट सेंट एंड्रूज बेस्ट। एंड्रूज स्कूल ने बच्चों का भविष्य निखार दिया है। पुण्य कार्य हो रहा है। डॉ. राम अवतार शर्मा के चरण चिह्नों पर चलते चले जाएं। उन्होंने कहा-
कुछ लोग कभी गलत काम कर नहीं सकते
सच्चाई की राहों से डर नहीं सकते
सदियां सदैव जिनको याद करती रहेंगी
ऐसे ही लोग मर के कभी मर नहीं सकते।

डॉ. गिरधर शर्मा का अनुकरणीय संकल्प
एंड्रूज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीएमडी (अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक) डॉ. गिरधर शर्मा ने कहा- जीवन चलायमान है। समय गतिमान है। पिताजी की पुण्य तिथि पर याद आती है कि समय कितनी तेजी से भाग रहा है। उन्होंने कहा, मैं ईश्वर को साक्षी मानकर पिता जी ने जो पथ दिखाया है, उस पर चलने का संकल्प लेता हूँ।
कार्यक्रम का संचालन कुमार ललित ने किया। आदर्श नंदन गुप्त ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

संपादकीय टिप्पणी – सी.एफ. एंड्रूज स्कूल की अनूठी पहल
सी.एफ. एंड्रूज स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य कर रहा है, वह अति प्रशंसनीय और अनुकरणीय है। यह मात्र एक स्कूल नहीं, बल्कि संस्कार, ज्ञान और नैतिकता का एक प्रकाश स्तंभ है। यहां शिक्षा के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और मूल्यों का समुचित विकास किया जा रहा है।
“पूर्व और पश्चिम में श्रेष्ठ कौन?” – इस प्रश्न का उत्तर आज स्वयं सिद्ध हो रहा है –
ईस्ट-वेस्ट, सेंट एंड्रूज बेस्ट!
यह विद्यालय केवल विद्यार्थियों का भविष्य नहीं गढ़ रहा, बल्कि भारत के उज्ज्वल कल की नींव रख रहा है।
सी.एफ. एंड्रूज स्कूल के प्रयासों को नमन!
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