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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.
आगरा के सिकंदरा क्षेत्र में भावना एस्टेट मॉल में शराब की दुकान खोलने का मामला तूल पकड़ रहा है। स्थानीय दुकानदारों और निवासियों ने इसे भ्रष्टाचार का परिणाम बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया है। आबकारी विभाग की मिलीभगत और नियमों की अनदेखी के चलते मॉल में शराब की दुकान खोलने की प्रक्रिया ने सामाजिक और नैतिक मूल्यों को तार-तार कर दिया है।
नियमों की अनदेखी: रजिस्ट्री का उल्लंघन
भावना एस्टेट मॉल, सिकंदरा को रिहायशी कॉलोनी की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनाया गया था। मॉल के सभी निवासियों की रजिस्ट्री में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि परिसर में मांस या मदिरा से संबंधित कोई व्यापार नहीं होगा। इसके बावजूद, दुकान संख्या UG-12 में शराब की दुकान खोलने का लाइसेंस जारी किया गया। यह न केवल रजिस्ट्री के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है।
भ्रष्टाचार का नंगा नाच: आबकारी विभाग की भूमिका
सवाल यह है कि जब रजिस्ट्री में शराब की दुकान पर स्पष्ट प्रतिबंध है, तो आबकारी विभाग ने बिना जाँच-पड़ताल के लाइसेंस कैसे जारी कर दिया? यह मामला भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को उजागर करता है। सत्य प्रकाश विकल्प चैरिटेबल नेत्रालय के समीप कमला नगर में भी इसी तरह नियमों को ताक पर रखकर देसी शराब की दुकान खोली गई थी। क्या यह संयोग मात्र है या सत्ता और धन के गठजोड़ का परिणाम?
सामाजिक ताने-बाने पर खतरा: महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा दाँव पर
प्रस्तावित शराब दुकान के ठीक ऊपर नर्सिंग की कक्षाएँ संचालित होती हैं, जबकि पास में ही डॉ. उजाला सिंह का महिला क्लिनिक और श्रीमती चड्ढा की लेडीज़ गिफ्ट शॉप है। इस क्षेत्र में अधिकांश दुकानें महिलाओं द्वारा संचालित की जाती हैं। ऐसे संवेदनशील परिवेश में शराब की दुकान खोलना न केवल सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि यह महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा। क्षेत्र की शांति और सामान्य जनजीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ना तय है।
जनाक्रोश और माँग: तत्काल कार्रवाई की आवश्यकताभावना मॉल के दुकानदारों ने इस कदम का पुरज़ोर विरोध करते हुए जिलाधिकारी से तत्काल हस्तक्षेप की माँग की है। उन्होंने शराब की दुकान खोलने की प्रक्रिया को अविलंब रोकने और आबकारी विभाग की भूमिका की निष्पक्ष जाँच की माँग की है। दुकानदारों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई और भविष्य में कोई अप्रिय घटना हुई, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।यह मामला केवल एक शराब की दुकान का नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, लापरवाही और सामाजिक मूल्यों के हनन का है। आगरा प्रशासन से अपेक्षा है कि वह जनभावनाओं का सम्मान करे और इस अनैतिक कदम को तुरंत रोके।
संपादकीयटिप्पणी: शराब की छाया में डूबता सामाजिक ताना-बाना
सिकंदरा के भावना एस्टेट मॉल में शराब की दुकान खोलने का विवाद केवल नियमों के उल्लंघन तक सीमित नहीं है; यह एक गहरे सामाजिक और नैतिक संकट का प्रतीक है। जहाँ एक ओर यह मॉल रिहायशी कॉलोनी की सादगी और दैनिक आवश्यकताओं का प्रतीक था, वहीं अब यह भ्रष्टाचार की काली छाया और लालच के विषैले पंजों में जकड़ा नजर आता है। आबकारी विभाग की संदिग्ध भूमिका और रजिस्ट्री के स्पष्ट नियमों की अवहेलना न केवल प्रशासनिक विफलता को उजागर करती है, बल्कि यह प्रश्न भी उठाती है कि क्या हमारा समाज अब उन मूल्यों को भूल चुका है, जो इसे सुसंस्कृत और सुरक्षित बनाते हैं?
शराब, जो केवल एक पेय नहीं, बल्कि सामाजिक विनाश का एक घातक हथियार है, अपने साथ अनैतिकता, अशांति और असुरक्षा का जहर लाती है। यह नशा केवल शरीर को ही नहीं, बल्कि आत्मा को भी खोखला करता है। जब यह विषैला व्यापार एक ऐसे परिवेश में प्रवेश करता है, जहाँ नर्सिंग की कक्षाएँ संचालित होती हैं, महिलाएँ अपने छोटे-छोटे व्यवसायों में आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करती हैं, और बच्चों के कदम भविष्य की ओर बढ़ते हैं, तो यह केवल एक दुकान का मामला नहीं रह जाता। यह उस सामाजिक ताने-बाने पर कुल्हाड़ी का प्रहार है, जो सभ्यता का आधार है।शराब की दुकान का यह प्रस्ताव न केवल महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि उस शांति को भी भंग करता है, जो एक रिहायशी कॉलोनी का हृदय होती है। क्या हम इतने असंवेदनशील हो चुके हैं कि धन और सत्ता के लोभ में अपने ही समाज की नींव को खोखला करने को तैयार हैं? यह प्रश्न केवल भावना मॉल के दुकानदारों का नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का है, जो सामाजिक मर्यादाओं और नैतिकता को जीवित रखना चाहता है।शराब का नशा केवल व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे समुदाय को अंधेरे में धकेलता है।
इसकी लपटें परिवारों को जलाती हैं, रिश्तों को तोड़ती हैं और समाज को खंड-खंड करती हैं। इस संदर्भ में, दो शेर इस पीड़ा को कुछ यूं बयां करते हैं:
शराब की लहर में डूबा जहाँ,
वहाँ टूटते हैं सपनों का मकाँ।
नशे का ये जहर जो चढ़ता सदा,
मिटाता है इंसान का इंसानपना।
गली-गली में बिकता है ये ज़हर,
निगल रहा है ये समाज का असर।
कहाँ गई वो संस्कृति, वो मर्यादा,
जो बचाए थी हमको हर आफत से बरसों सदा।
यह समय है कि हम इस विषैले व्यापार के खिलाफ एकजुट हों। भावना मॉल के दुकानदारों का यह विरोध केवल उनकी नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की आवाज है, जो अपने समाज को सुरक्षित, सुसंस्कृत और शांतिपूर्ण देखना चाहता है। यदि प्रशासन इस मूक पुकार को अनसुना करता है, तो यह न केवल एक प्रशासनिक चूक होगी, बल्कि उस नैतिक पतन का द्योतक होगी, जो हमारे समाज को धीरे-धीरे निगल रहा है।
आइए, इस जहर को अपनी गलियों में प्रवेश करने से पहले ही रोक दें, ताकि हमारा समाज उस प्रकाश की ओर बढ़ सके, जो सत्य, शांति और संस्कृति से आलोकित हो। आइए, इस जहर को अपनी गलियों में प्रवेश करने से पहले ही रोक दें, ताकि हमारा समाज उस प्रकाश की ओर बढ़ सके, जो सत्य, शांति और संस्कृति से आलोकित हो।