प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ाँ की आज पुण्यतिथि है। 28 अगस्त 1928 को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के गौरीपुर में जन्मे विलायत ख़ाँ का इंतकाल 13 मार्च 2004 को मुंबई में हुआ था।
विलायत ख़ाँ ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत ख्याति प्राप्त की थी। उस्ताद विलायत ख़ाँ की पिछली कई पुश्तें सितार वादन से जुड़ी रही थीं। उनके पिता इनायत हुसैन ख़ाँ से पहले उस्ताद इमदाद हुसैन ख़ाँ भी जाने-माने सितार वादक रहे थे। इनायत हुसैन ख़ाँ अपने समय के न केवल सुरबहार और सितार के विख्यात वादक थे, बल्कि सितार वाद्य को विकसित रूप देने में भी उनका काफ़ी योगदान था।
विलायत ख़ाँ ने सितार वादन की अपनी अलग गायन शैली विकसित की थी, जिसमें श्रोताओं को गायन का अहसास होता था। उनकी कला के सम्मान में राष्ट्रपति फ़खरुद्दीन अली अहमद ने उन्हें “आफ़ताब-ए-सितार” का सम्मान दिया था। ये सम्मान पाने वाले वे एकमात्र सितार वादक थे।
उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन ख़ाँ उस्ताद विलायत ख़ाँ के अनुसार सितार वाद्य प्राचीन वीणा का ही परिवर्तित रूप है। इनके दादा उस्ताद इमदाद ख़ाँ अपने समय के रुद्रवीणा वादक थे। उन्हीं के मन में सबसे पहले सितार में तरब के तारों को जोड़ने का विचार आया था किन्तु इसे पूरा किया, विलायत ख़ाँ के पिता इनायत ख़ाँ ने। उन्होंने संगीत के वाद्यों के निर्माता कन्हाई लाल के माध्यम से इस स्वप्न को साकार किया। सितार के ऊपरी हिस्से पर दूसरा तुम्बा लगाने का श्रेय भी इन्हें प्राप्त है। शिक्षा उस्ताद विलायत ख़ाँ ने अपनी शुरुआती संगीत शिक्षा पिता इनायत ख़ाँ से प्राप्त की थी। जब वे मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में ही थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। बाद में उनके चाचा वाहीद ख़ाँ ने उन्हें सितार वादन की शिक्षा दी। उनके नाना बन्दे हुसेन ख़ाँ और मामू जिन्दे हुसेन ख़ाँ से भी उन्हें गायन की शिक्षा प्राप्त हुई। यह गायकों का घराना था।
विवाह
विलायत ख़ाँ ने दो विवाह किए थे। वे दो पुत्रियों और दो पुत्रों के पिता बने थे। उस्ताद विलायत ख़ाँ के दोनों बेटे सुजात हुसैन ख़ाँ और हिदायत ख़ाँ भी प्रमुख सितार वादकों में गिने जाते हैं।
माँ की प्रेरणा
आरम्भ में विलायत ख़ाँ का झुकाव गायन की ओर ही था किन्तु उनकी माँ ने उन्हें अपनी खानदानी परम्परा निभाने के लिए प्रेरित किया। गायन की ओर उनके झुकाव के कारण ही आगे चलकर उन्होंने अपने वाद्य को गायकी अंग के अनुकूल परिवर्तित करने का सफल प्रयास किया। यही नहीं, अपने मंच-प्रदर्शन के दौरान प्रायः वे गाने भी लगते थे। 1993 में लन्दन के रॉयल फ़ेस्टिवल हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में ख़ाँ साहब ने ‘राग हमीर’ के वादन के दौरान पूरी बन्दिश का गायन भी प्रस्तुत कर दिया था।
-एजेंसियां
- Made in India: Agatsa Launches EasyTouch+ – India’s First Smart, Prickless Glucose Meter, CDSCO Approved, Trusted by Over 6,000 Users - August 20, 2025
- रिश्तों की कड़वी हकीकत को प्रदर्शित करती फिल्म ‘दिल बेवफा’ का हुआ प्रीमियर - August 20, 2025
- आगरा के डॉक्टर मल्होत्रा दंपति को चंडीगढ़ में मिला लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, जानिए क्यों - August 20, 2025