देश की एकता-अखंडता में घुलता जातीय संघर्ष का जहर..!

भारत की आत्मा उसकी सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता में रही है, लेकिन आज यह विविधता विघटन की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। जातीय संघर्ष अब न तो असामान्य रह गया है और न ही सीमित। आए दिन किसी न किसी हिस्से से झड़प, नारेबाज़ी, बहिष्कार, आगज़नी और हिंसक प्रदर्शन की खबरें आ रही […]

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जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती?

डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट भारत दुनिया की 18% आबादी और मात्र 4% ताजे जल संसाधनों के साथ गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, असंतुलित खेती, और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद कार्यान्वयन और जनभागीदारी की […]

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अंतरिक्ष की नई उड़ान: एक्सिओम-4 और भारत की वैश्विक पहचान

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार एक्सिओम-4 मिशन भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल की सहभागिता से यह मिशन सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति का प्रतीक बन गया है। अमेरिका की एक्सिओम-4 स्पेस और नासा के सहयोग से हुआ […]

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“कॉलर ट्यून की विदाई: जनता की सुनवाई या थकान की जीत?”

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार 6 दिन पहले प्रकाशित हुआ मेरा लेख — “कॉलर ट्यून या कलेजे पर हथौड़ा: हर बार अमिताभ क्यों? जब चेतावनी बन गई चिढ़” अमिताभ बच्चन की कोविड कॉलर ट्यून ने देश को जागरूक किया, पर समय के साथ वह झुंझलाहट में बदल गई। जनभावनाओं की अनदेखी नीतियों के […]

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लैंगिक समानता की राह में भारत की गिरावट: एक चिंताजनक संकेत

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम) की वैश्विक लैंगिक अंतर रिपोर्ट 2024 में भारत को 148 देशों में 131वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। यह न केवल दो पायदान की गिरावट है, बल्कि भारत की विकास यात्रा में छुपी उस असमानता का पर्दाफाश भी करती है जिसे हम अक्सर […]

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नया लोकतंत्र?…जब कलम चुप हो जाए: लोकतंत्र का शोकगीत

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार आपातकाल के दौरान अख़बारों ने विरोध में अपना संपादकीय कॉलम ख़ाली छोड़ा था। आज औपचारिक सेंसरशिप नहीं है, लेकिन आत्म-सेन्सरशिप, भय और ‘राष्ट्रभक्ति’ के नाम पर विचारों का गला घोंटा जा रहा है। सवाल पूछना देशद्रोह बन गया है, और संपादकीय अब सत्ता के प्रवक्ता हो गए हैं। […]

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दुर्घटना पीड़ितों के लिए “कैशलेस” उपचार : नीयत नेक, व्यवस्था बेकार

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार इस देश में जब कोई सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त होता है, तो सबसे पहले यह नहीं पूछा जाता कि ज़ख्म कितना गहरा है — पहले यह पूछा जाता है कि “पहचान पत्र है?”, “बीमा है?”, “अस्पताल पंजीकृत है?” और फिर अंत में — “बचा पाएँगे या नहीं?”। मानो पीड़ित […]

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आधी आबादी, अधूरी भागीदारी: ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत की गिरती साख

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार 21वीं सदी की सबसे बड़ी क्रांतियों में एक है—महिलाओं की भागीदारी का बढ़ना। फिर भी, जब वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम ने ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2025 जारी किया, तो भारत का 131वां स्थान यह संकेत देता है कि विकास के तमाम दावों के बावजूद महिला सशक्तिकरण केवल नारों में […]

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कोचिंग का क्रेडिट, स्कूल की गुमनामी: शिक्षकों के साथ यह अन्याय कब तक?

डॉ सत्यवान सौरभ आज कोचिंग संस्थानों को छात्रों की सफलता का सारा श्रेय मिलता है, जबकि वे शिक्षक गुमनाम रह जाते हैं जिन्होंने वर्षों तक नींव रखी। यह संपादकीय उसी विस्मृति की पीड़ा को उजागर करता है। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक सिर्फ परीक्षा नहीं, सोच, भाषा और संस्कार गढ़ते हैं। कोचिंग एक […]

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विश्वविद्यालय: शिक्षा का मंदिर या जाति की प्रयोगशाला?

“हमारी जाति एचएयू: हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलन और जातिगत अन्याय के खिलाफ उठती आवाज” प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू), हिसार – देश के प्रतिष्ठित कृषि संस्थानों में गिना जाता है। पर आज यह संस्थान छात्रों के लिए जातिगत अपमान और प्रशासनिक चुप्पी का केंद्र बन गया है। […]

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