योग: मन की शुद्धि से मोक्ष तक का मार्ग

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार मन ही सब कुछ है – यही योग का मूल मंत्र है। मन की शुद्धि, आत्म-चिंतन और संतुलन से ही जीवन में स्थिरता और शांति आती है। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि मन, आत्मा और चेतना को जोड़ने की विद्या है। आज के तनावपूर्ण समय में, योग […]

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भारतीय ग्रीष्म में पाश्चात्य परिधान की विरासत व अंग्रेजी सूट की प्रासंगिकता

भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जहाँ अधिकतर भागों में ग्रीष्मकाल प्रचंड गर्मी लेकर आता है। ऐसे में जब हम भारतीयों को अंग्रेजी सूट-पैंट जैसे शीतकालीन परिधानों में पाते हैं, तो यह केवल जलवायु के प्रतिकूलता का प्रश्न नहीं बनता, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और मनोवैज्ञानिक विमर्शों की ज़रूरत भी पैदा करता है। देश में ग्रीष्मकाल के […]

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CET की डेट एक्सटेंशन का दिखावा, महज 48 घण्टे बढे, कौन जिम्मेदार है इस टॉर्चर के लिए?

“डिजिटल इंडिया” का सपना दिखाने वालों के खुद के पोर्टल इस्तेमाल के वक़्त क्यों हो जाते है ठप्प? सरल पोर्टल की असफलता: हरियाणा के युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ सर्टिफिकेट कहाँ से लाएं? प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार हरियाणा में आज जो हालात हैं, वहां डिजिटल नहीं, टॉर्चर इंडिया का निर्माण हो रहा […]

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पुल गिरना ममता के खिलाफ भगवान का संदेश था: और जहाज गिरना ?

शकील अख्तर पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या कहा था? “ यह जो पुल टूटा भगवान का संदेश है। इसे ( मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ) हटाओ नहीं तो कल यह पूरा बंगाल खत्म कर देगी! “ यह भी कहा कि चुनाव के समय पुल इसलिए गिरा है ताकि लोगों को पता चल सके […]

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पुरस्कारों का सौदा: साहित्य के बाज़ार में बिकती संवेदनाएं

डॉ सत्यवान सौरभ साहित्य आज साधना नहीं, सौदेबाज़ी का बाज़ार बनता जा रहा है। नकली संस्थाएं ₹1000-₹2500 लेकर ‘राष्ट्रीय’ और ‘अंतरराष्ट्रीय’ पुरस्कार बांट रही हैं। यह केवल साहित्य नहीं, भाषा की भी हत्या है। “सहयोग राशि” के नाम पर सम्मान बिक रहा है, और सच्चे साहित्यकारों की साधना उपेक्षित हो रही है। अब समय आ […]

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पर्यावरण दिवस फोटो के लिए नहीं, भविष्य के लिए मनाएं,: क्या आपने पिछले साल के पौधे भी देखे ?

हर वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर हम पौधे लगाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन एक प्रश्न अनदेखा रह जाता है — क्या पिछले साल लगाए पौधे अभी भी जीवित हैं? पौधारोपण अब महज़ एक दिखावे का आयोजन बन चुका है, जिसमें जिम्मेदारी गौण और प्रचार प्रमुख हो गया है। जरूरत है “वृक्षपालन” की, जिसमें हर […]

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पर्यावरण संरक्षण: पेड़ों की कटाई पर प्रतिबन्ध से क्या वाकई बदल रहे हैं हालात?

पर्यावरण संरक्षण में पेड़ों की क्या भूमिका है, इसे शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है. बस यूँ समझ लीजिए कि शरीर को चलायमान रखने के लिए जिस तरह से आत्मा का उसमें होना ज़रूरी है. वैसे ही पर्यावरण के लिए पेड़ों की मौजूदगी आवश्यक है. शायद यही वजह है कि देश में पेड़ों की […]

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“लाइक्स” ओर “फॉलोअर्स” में जीवन का अस्तित्व तलाशते युवा…

बृजेश सिंह तोमर(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक) सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में जीने की प्रवृत्ति से आज की युवा पीढ़ी आत्ममूल्यांकन के बजाय “लाइक्स” और “फॉलोअर्स” के तराजू से अपने अस्तित्व की कीमत आंकने लगी है। हाल ही में मात्र 23 वर्ष की आयु में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर मीशा का इस दुनिया को अलविदा […]

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हरियाणा में चौपालों का वर्चस्व – लोकतंत्र की जड़ें या परंपरा की जंजीर?

डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा की ग्रामीण संस्कृति में ‘चौपाल’ सिर्फ एक बैठने की जगह नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और कभी-कभी राजनीतिक निर्णयों का अनौपचारिक मंच रही है। यह जगह जहाँ बुज़ुर्ग अपनी ताश की गड्डी के साथ बैठते हैं, वहीं यह सामाजिक आचार-संहिताओं का अनकहा विधान भी तय करती है। लेकिन समय के साथ सवाल […]

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यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता! (भाग – 2) ठाकुर दलीप सिंघ जी

यदि विचार किया जाए: तो आज भी विश्व के सब से बड़े भाग को गुलाम बना कर, उस पर इंग्लैंड, अमरीका आदि के अंग्रेज़ी-भाषी लोग ही शासन कर रहे हैं। इस का कारण केवल वही है, जिस का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ : ‘इंग्लैंड का विश्व के लोगों को गुलाम बना कर, वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित […]

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