ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था।
माखनलाल की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई और यहीं इन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजरती आदि भाषाओँ का ज्ञान प्राप्त किया।
प्राइमरी अध्यापक नंदलाल चतुर्वेदी के पुत्र माखनलाल की रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। वो सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे रचनाकार थे। 1921-22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए वो जेल भी गए और इसलिए उनकी कविताओं में प्रकृति और प्रेम के साथ-साथ देशप्रेम का भी चित्रण हुआ है।
‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डीलिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। 10 सितंबर 1967 को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। 16-17 जनवरी 1965 को मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में ‘एक भारतीय आत्मा’ माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल श्री हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं. द्वारका प्रसाद मिश्र तथा हिन्दी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिये उन्हें 1955 में हिन्दी के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
उनकी लेखन भाषा भी हिंदी के उस काल का प्रतिबिम्ब है-
प्रहरी पलकें? चुप, सोने दो!
धड़कन रोती है? रोने दो!
पुतली के अँधियारे जग में-
साजन के मग स्वच्छन्द चलो।
पर मन्द चलो।
उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण!
आत्म-कलह पर
विश्व-सतह पर
कूजित हो तेरा वेद गान!
उठ अब, ऐ मेरे महा प्राण
स्मृति-पंखें फैला-फैला कर
सुख-दुख के झोंके खा-खाकर
ले अवसर उड़ान अकुलाकर
हुई मस्त दिलदार लगन में
उड़ने दे धनश्याम गगन में!
उस प्रभात, तू बात न माने,
तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई,
फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं
पर न वहाँ तेरी छवि पाई,
कलियों का यम मुझ में धाया
तब साजन क्यों दौड़ न आया?
मैं कहीं होऊँ न होऊँ
तू मुझे लाखों में हो,
मैं मिटूँ जिस रोज मनहर
तू मेरी आँखों में हो।
-Legend News
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