भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक पंडित जसराज का आज जन्मदिन है। 28 जनवरी 1930 को हिसार में जन्मे पंडित जसराज का निधन 17 अगस्त 2020 को अमेरिका के राज्य न्यू जर्सी में हुआ। हालांकि उनका अंतिम संस्कार भारत में ही मुंबई के पवनहंस श्मशान घाट पर किया गया। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई।
हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ थे ख्याति प्राप्त पंडित जसराज जी, जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में अपने दिवंगत पिता से विरासत की तरह मिले केवल सात स्वरों के साथ क़दम रखा था। उनका संबंध मेवाती घराने से था। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण (2000), पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975) जैसे सम्मान से नावाजा गया था।
4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त उनके पिता श्री पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ, जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र पं. जसराज के अग्रज संगीत महामहोपाध्याय पं. मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं. जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा।
मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था। 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला तथा आगरा के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं।
आवाज़ की विशेषता
पं. जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक था। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की ‘ख़याल’ शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में ‘हवेली संगीत’ पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, ‘मूर्छना’ की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम ‘जसरंगी’ रखा गया।
-एजेंसियां
- रौनक ने GLA University Mathura और पत्रकार कमलकांत उपमन्यु का मान बढ़ाया, 278 नेशनल डिबेट में से 251 में प्रथम स्थान पाया - September 29, 2025
- Agra News: गोस्वामी समाज सेवा समिति ने नवरात्रों के पावन अवसर पर भव्य भंडारे का किया आयोजन, गरबा और भक्ति गीतों झूमे श्रद्धालु - September 28, 2025
- स्वानंद किरकिरे का नाटक खोलेगा बॉलीवुड का असली चेहरा, फिरोज़ जाहिद खान कर रहे हैं ‘बेला मेरी जान’ का निर्देशन - September 28, 2025