गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार के उस कानून को बरकरार रखा है जिसके तहत सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी मदरसों को सामान्य स्कूल में तब्दील किया जाना है। मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की खंडपीठ ने कहा कि विधानसभा और राज्य सरकार द्वारा लाए गए बदलाव सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों के लिए ही हैं और निजी या सामुदायिक मदरसों के लिए नहीं हैं। पीठ ने कानून की वैधता को चुनौती देने वाली रिट याचिका को खारिज कर दिया।
यह याचिका 2021 में 13 व्यक्तियों की ओर से दायर की गई थी और इसके माध्यम से राज्य सरकार के उस निर्णय को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदला जाना है। अदालत ने 27 जनवरी को सुनवाई पूरी कर ली थी और निर्णय सुरक्षित रख लिया था जिसे शुक्रवार को जारी किया गया।
विधेयक में क्या है?
असम सरकार ने एक अप्रैल 2021 से राज्य में सभी सरकारी मदरसों को बंद करने और उन्हें स्कूलों में बदलने से जुड़ा एक विधेयक विधानसभा में पेश किया था। इस विधेयक में असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) कानून 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शिक्षण संस्थानों का पुनर्गठन) कानून 2018 को खत्म करने का प्रस्ताव दिया है। विधेयक में यह प्रावधान है कि प्रदेश के सभी मदरसे उच्च प्राथमिक, उच्च और माध्यमिक स्कूलों में बदले जाएंगे। असम सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि शिक्षक और गैर शिक्षण कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं होगा और यह पहले की तरह जारी रहेगा। असम में सरकार संचालित लगभग 683 मदरसे हैं।
सामान्य स्कूल में बदलेंगे 683 मदरसे
पूर्व में सरकार यह बता चुकी है कि सरकार की ओर से चलाए जाने वाले सभी 683 मदरसों को सामान्य विद्यालयों में परिवर्तित किया जाएगा और 97 संस्कृत टोल कुमार भास्करवर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय को सौंप दिए जाएंगे। इन संस्कृत टोल को शिक्षा और अनुसंधान के केंद्रों में बदला जाएगा जहां धर्म से परे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीयता की श्क्षिा दी जाएगी, जो ऐसा करने वाला असम को पहला भारतीय राज्य बनाया जाएगा। सरकार ने यह भी साफ किया है कि निजी भागीदारी से जो मदरसे चलते हैं, उन्हें बंद नहीं किया जाएगा।
-एजेंसियां
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