राष्ट्रभाषा की ओर एक नई पहल: आगरा के तीन साहित्यकार हिंदी सलाहकार समिति में मनोनीत

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नई दिल्ली, भारत की राजधानी। हिंदी के प्रचार-प्रसार और उसके संवैधानिक सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की पुनर्गठित संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति में तीन वरिष्ठ गैर-सरकारी सदस्यों को नामित किया है। समिति के अध्यक्ष केंद्रीय राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल हैं।

इनमें आगरा के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र मिलन,  श्रुति सिन्हा एवं  हरिओम शर्मा को शामिल किया गया है। यह नियुक्तियाँ हिंदी भाषा के विकास में आगरा की साहित्यिक एवं बौद्धिक भूमिका को मान्यता देने जैसा प्रतीत होती हैं।

गुरुवार देर शाम जारी एक आधिकारिक पत्र के माध्यम से राजभाषा निदेशक ने इन नामों की पुष्टि की। सदस्यों के चयन की जानकारी मिलते ही साहित्यिक जगत में हर्ष की लहर दौड़ गई। यह नियुक्तियाँ न केवल आगरा के लिए गौरव की बात हैं, बल्कि हिंदी के भविष्य के लिए भी आशा की किरण हैं।

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए क्या आवश्यक है?

आज भी हिंदी को संवैधानिक रूप से “राजभाषा” का दर्जा प्राप्त है, लेकिन इसे “राष्ट्रभाषा” बनाने की दिशा में कई बाधाएँ विद्यमान हैं। इस दिशा में निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:

1. राजनीतिक इच्छाशक्ति – हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए केंद्र एवं राज्यों में स्पष्ट और ठोस राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक है।

2. शैक्षणिक एकरूपता – देशभर के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में हिंदी को एक समान स्तर पर अनिवार्य किया जाना चाहिए।

3. प्रशासनिक प्रयोग – सरकारी दफ़्तरों, न्यायालयों और उच्च शिक्षा में हिंदी का व्यापक और व्यावहारिक उपयोग बढ़ाया जाए।

4. तकनीकी और डिजिटल माध्यमों में हिंदी – डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स पर हिंदी की उपस्थिति को और अधिक सशक्त और तकनीकी रूप से समृद्ध बनाना होगा।

5. अनुवाद और शब्दावली – विज्ञान, तकनीक, चिकित्सा, विधि आदि क्षेत्रों में हिंदी की सटीक शब्दावली और उच्च स्तरीय अनुवाद कार्य ज़रूरी है।

संपादकीय टिप्पणी

“तीन नाम, एक लक्ष्य – राष्ट्रभाषा हिंदी की पुनर्परिभाषा”

डॉ. राजेन्द्र मिलन, श्रुति सिन्हा और हरिओम शर्मा की हिंदी सलाहकार समिति में नियुक्ति, एक सामान्य प्रशासनिक कदम भर नहीं, बल्कि हिंदी के सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक पुनर्जागरण की नींव मानी जानी चाहिए।

इन तीनों में साहित्य, समाज जैसे प्रमुख क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है। डॉ. राजेन्द्र मिलन जहाँ हिंदी साहित्य की गहराइयों को स्पर्श करते हैं, वहीं श्रुति सिन्हा सामाजिक चेतना में हिंदी की उपयोगिता को समझती हैं, और हरिओम शर्मा लेखन के माध्यम से जन-जन तक भाषा का स्वर पहुंचाते हैं।

इनकी नियुक्ति से संभावित लाभ:

1. नीतिगत हस्तक्षेप में संतुलित दृष्टिकोण – साहित्यिक, सामाजिक विशेषज्ञता मिलकर ऐसे सुझाव दे सकती है जो व्यवहारिक भी हों और वैचारिक रूप से समृद्ध भी।

2. भाषायी योजनाओं में स्थानीय जुड़ाव – आगरा जैसे शहरों से जुड़े व्यक्तित्व जमीनी स्तर की समस्याओं और संभावनाओं को बेहतर समझते हैं, जिससे योजनाएं अधिक प्रभावशाली बन सकती हैं।

3. हिंदी को डिजिटल युग में प्रासंगिक बनाना – मीडिया एवं तकनीकी माध्यमों में हिंदी की उपस्थिति को सशक्त बनाने के लिए ये सदस्य प्रेरक भूमिका निभा सकते हैं।

4. जनजागरण और भाषायी गर्व – इनके माध्यम से भाषा के प्रति नई पीढ़ी में स्वाभिमान और लगाव उत्पन्न किया जा सकता है।

निष्कर्षतः, यह नियुक्ति केवल तीन व्यक्तियों की नहीं है, बल्कि एक वैचारिक प्रतिनिधित्व है – यह उन लाखों हिंदी प्रेमियों की आशा का प्रतिनिधित्व करती है जो वर्षों से चाहते रहे हैं कि हिंदी केवल बोलचाल की भाषा न रह जाए, बल्कि वह प्रशासन, शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और न्याय जैसे क्षेत्रों में एक सशक्त राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित हो।

यह समय है कि हम इस नियुक्ति को अवसर के रूप में देखें – हिंदी के उज्जवल भविष्य की नींव रखने का।

  • – संपादक
Dr. Bhanu Pratap Singh