अश्लील वीडियो की वायरल संस्कृति: मनोरंजन या मानसिक विकृति?

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार जब सोशल मीडिया हमारे जीवन में आया, तो उम्मीद थी कि यह विचारों को जोड़ने, संवाद को मज़बूत करने और जन-जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा। लेकिन आज, 2025 में, विशेषकर फेसबुक जैसे मंच पर जिस तरह से अश्लीलता और फूहड़ता का आतंक फैलता जा रहा है, […]

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बदलते युग का नया तमाशा: कुलवधुएँ फरार हैं! पुरुषों की निगरानी पर स्त्रियों का ‘रिवर्स स्ट्राइक’

प्रियंका सौरभ समाज में अब बेटी की निगरानी नहीं, दादी और सास की होती है। तकनीक और आज़ादी के इस युग में रिश्तों की परिभाषा बदल गई है। जहाँ पहले लड़कियों की सुरक्षा सबसे बड़ी चिंता थी, अब वही महिलाएं अपनी आज़ादी के साथ नई दुनिया की खोज में हैं। पुरुषों की निगरानी पर स्त्रियाँ […]

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भर्ती में समानता की वापसी: सामाजिक-आर्थिक बोनस अंकों पर हाईकोर्ट की सख्ती

प्रियंका सौरभ भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र है – समान अवसर। लेकिन जब अवसरों की तुलना में विशेष सुविधाएं या बोनस अंक बांटे जाएं, तो यह उस मूल भावना को ही चोट पहुंचाता है। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में भर्ती प्रक्रियाओं में सामाजिक-आर्थिक आधार पर दिए जा रहे […]

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हरियाणा के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का अंतिम संस्कार: जब पूरी क्लास फेल होती है, तो सिस्टम अपराधी होता है…

डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा के 18 सरकारी स्कूलों में 12वीं का रिजल्ट शून्य प्रतिशत रहा, जो राज्य प्रायोजित शैक्षिक विफलता का संकेत है। यह केवल छात्रों की असफलता नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की नाकामी है — जिसमें शिक्षक नहीं, संसाधन नहीं और जवाबदेही भी नहीं। सरकार को पहले से इन स्कूलों की हालत पता […]

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घर के भेदी: सवाल सिर्फ सुरक्षा तंत्र का नहीं, हमारी सामाजिक चेतना का भी..

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार देश को बाहर से नहीं, भीतर से खतरा है। जब कोई सुरक्षा गार्ड, छात्र या यूट्यूबर चंद रुपयों या झूठे डिजिटल रिश्तों के लिए दुश्मन का एजेंट बन जाए, तो सवाल सिर्फ सुरक्षा तंत्र का नहीं, हमारी सामाजिक चेतना का है। आईएसआई से जुड़े जासूसों की हालिया गिरफ्तारी […]

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गद्दारी का साया: जब अपनों ने ही बेचा देश

मुठ्ठी भर मुगल और अंग्रेज देश पर सदियों राज नहीं करते यदि भारत में गद्दार प्रजाति न होती। यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी कुछ गद्दारों ने दुश्मन को भारतीय सेना की संवेदनशील जानकारी बेची, जिससे हमारे सैनिकों की जान खतरे में पड़ी। आज भी, जब […]

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सिन्दूर: अब श्रृंगार ही नहीं, शौर्य का प्रतीक

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार सिन्दूर, जो कभी सिर्फ वैवाहिक प्रेम का प्रतीक था, आज ऑपरेशन सिंदूर की नायिकाओं वियोमिका और सोफिया की साहसिक कहानियों का प्रतीक बन गया है। ये महिलाएं सिर्फ सजी-धजी मूरतें नहीं, बल्कि अदम्य साहस, बलिदान और नारी शक्ति का जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने न केवल अपने हौसले से […]

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डिजिटल स्टारडम में उलझे अधिकारी: सोशल मीडिया स्टार या सच्चे सेवक?

डॉ सत्यवान सौरभ आईएएस अधिकारियों का सोशल मीडिया पर बढ़ता रुझान एक नई चुनौती बनता जा रहा है। वे इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर नीतियों से जुड़ी जानकारियाँ और प्रेरणादायक कहानियाँ साझा कर रहे हैं, जो जागरूकता बढ़ा सकती हैं। लेकिन क्या यह डिजिटल स्टारडम उनकी वास्तविक प्रशासनिक जिम्मेदारियों से समझौता है? व्यक्तिगत छवि बनाने […]

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सोशल मीडिया पर देह की नुमाइश: सशक्तिकरण या आत्मसम्मान का संकट?

“लाइक्स की दौड़ में खोती पहचान: नारी सशक्तिकरण का असली मतलब” प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार सोशल मीडिया पर नारी देह का बढ़ता प्रदर्शन क्या वाकई सशक्तिकरण है या महज़ लाइक्स और फॉलोअर्स की होड़? क्या हम सच्ची आज़ादी की ओर बढ़ रहे हैं या एक डिजिटल पिंजरे में कैद हो रहे हैं? […]

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यमुना की पुकारः आगरा की आत्मा पर सरकारी बेपरवाही का साया

बृज खंडेलवाल आगरा: ताजमहल दुनिया की नजरों में बेमिसाल है, लेकिन इस शहर की रूह, यमुना नदी, सरकारी लापरवाही और खोखले वादों की भेंट चढ़ रही है। कभी तीर्थयात्रियों, नाविकों और व्यापारियों की चहल-पहल से गूंजने वाले यमुना के घाट आज वीरान और प्रदूषित पड़े हैं। यह नदी, जो शहर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर […]

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