बीजिंग रिपोर्ट की चेतावनी: पानी, पेट और पहचान की लड़ाई… ग्रामीण महिलाओं पर जलवायु की चोट

प्रियंका सौरभ 2025 बीजिंग इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन भारत की ग्रामीण महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है। सीमित संसाधनों, पारंपरिक सामाजिक भूमिकाओं और देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के चलते वे जलवायु जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। गर्मी, सूखा, और चरम मौसम उनके प्रजनन स्वास्थ्य, कृषि आधारित आजीविका, और नौकरी के […]

Continue Reading

अब व्यापार के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण: शर्बत भी बंटा हिन्दू और मुस्लिम में!

रामदेव के संघी झुकाव के बारे में सब जानते हैं। सब जानते है कि उसके भगवा चोले के अंदर एक कॉर्पोरेट बैठा हुआ है। रामदेव संघ-भाजपा की हिंदुत्व और कॉर्पोरेट गठजोड़ की राजनीति का नमूना भी है और उसका उत्पाद भी। इस रामदेव को लोगों ने सलवार-कुर्ता में डरकर भागते भी देखा है। इस पहनावे […]

Continue Reading

बाबा साहेब की विरासत पर सत्ता की सियासत, जयंती या सत्ता का स्वार्थी तमाशा?

“जयंती का शोर, विचारों से ग़ैरहाज़िरी”, “मूर्ति की पूजा, विचारों की हत्या”, “हाथ में माला, मन में पाखंड” प्रियंका सौरभ बाबा साहब के विचारों—जैसे सामाजिक न्याय, जातिवाद का उन्मूलन, दलित-पिछड़ों को सत्ता में हिस्सेदारी, और संविधान की गरिमा की रक्षा—को आज के राजनेता पूरी तरह नजरअंदाज कर रहे हैं। राजनीतिक दल केवल वोट बैंक के […]

Continue Reading

सत्ता, शहादत और सवाल: जलियांवाला बाग की आज की प्रासंगिकता

डॉ सत्यवान सौरभ जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) केवल ब्रिटिश अत्याचार का प्रतीक नहीं, बल्कि आज के भारत में सत्ता और लोकतंत्र के बीच जटिल रिश्ते का प्रतिबिंब भी है। जनरल डायर द्वारा किए गए नरसंहार ने स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी, लेकिन यह भी सिखाया कि जब सत्ता निरंकुश हो जाए और जनता मौन, तो […]

Continue Reading

शिक्षा या कमीशन? निजी स्कूलों की किताबों के पीछे छुपा मुनाफाखोरी का खेल

प्रियंका सौरभ निजी स्कूल एनसीईआरटी की सस्ती और गुणवत्तापूर्ण किताबों की बजाय, कमीशन के लालच में निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें बच्चों पर थोपते हैं। हर साल जानबूझकर पाठ्यक्रम में मामूली बदलाव कर किताबें बदल दी जाती हैं ताकि पुराने संस्करण बेकार हो जाएं। स्कूलों और प्रकाशकों के गठजोड़ से चुनिंदा दुकानों पर ही ये […]

Continue Reading

नया भारत और फुले का सपना: “ज्योतिबा फुले का भारत बनाना अभी बाकी है”

प्रियंका सौरभ फुले केवल उन्नीसवीं सदी के समाज सुधारक नहीं थे, बल्कि वे आज भी जाति, लिंग और वर्ग आधारित असमानताओं के खिलाफ एक जीवंत विचारधारा हैं। उन्होंने शिक्षा को सामाजिक समानता का हथियार बनाया, महिलाओं और दलितों के लिए स्कूल खोले, और ब्राह्मणवादी सत्ता संरचना को खुली चुनौती दी। आज भी जब शिक्षा का […]

Continue Reading

प्राइवेट सिस्टम का खेल: आम आदमी की जेब पर हमला

डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकार आज निजी संस्थानों के लिए मुनाफे का जरिया बन चुके हैं। प्राइवेट स्कूल सुविधाओं की आड़ में अभिभावकों से मनमाने शुल्क वसूलते हैं—ड्रेस, किताबें, यूनिफॉर्म, कोचिंग—सब कुछ महँगा और अनिवार्य बना दिया गया है। वहीं, प्राइवेट हॉस्पिटल […]

Continue Reading

जाति की जंजीरें: आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी

आस्था पेशाब तक पिला देती है, जाति पानी तक नहीं पीने देती। प्रियंका सौरभ कैसे लोग अंधभक्ति में बाबा की पेशाब को “प्रसाद” मानकर पी सकते हैं, लेकिन जाति के नाम पर दलित व्यक्ति के छूने मात्र से पानी अपवित्र मान लिया जाता है। इन समस्याओं की जड़ें धर्म, राजनीति, शिक्षा और मीडिया की भूमिका […]

Continue Reading

मीडिया, स्त्री और सनसनी: क्या हम न्याय कर पा रहे हैं?

“धोखे की खबरें बिकती हैं, लेकिन विश्वास की कहानियाँ दबा दी जाती हैं — क्या हम संतुलन भूल गए हैं?” डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट मीडिया में स्त्रियों की छवि और उससे जुड़ी सनसनीखेज रिपोर्टिंग ने आज गंभीर सवाल पैदा कर दिये है। कुछ घटनाओं में स्त्रियों द्वारा किए गए […]

Continue Reading

कोचिंग इंडस्ट्री की मनमानी: अभिभावकों और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़

ALLEN Career Institute, हिसार प्रकरण पर एक सख्त सवाल प्रियंका सौरभ हिसार स्थित ALLEN Career Institute पर अभिभावकों ने आरोप लगाए हैं कि संस्थान ने उनके बच्चों का एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद कर दिया और अब जबरन फीस वसूली कर रहा है। यह घटना कोचिंग इंडस्ट्री की अनियंत्रित और मुनाफाखोर प्रवृत्ति को उजागर करती है। […]

Continue Reading