गिरते पुल, ढहती ज़िम्मेदारियाँ: बुनियादी ढांचे की सड़न और सुधार की ज़रूरत

डॉ सत्यवान सौरभ वडोदरा में पुल गिरना कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि भारत के जर्जर होते बुनियादी ढांचे की डरावनी सच्चाई है। पुरानी संरचनाएं, घटिया सामग्री, भ्रष्टाचार और निरीक्षण की अनुपस्थिति — यह सब मौत को दावत दे रहा है। राजनीतिक घोषणाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन टिकाऊ निर्माण और जवाबदेही की योजनाएँ नदारद हैं। […]

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जब छात्र हत्यारे बन जाएं: संवाद का अभाव, संस्कारों की हार, स्कूलों में हिंसा समाज की चुप्पी का फल

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार हिसार में शिक्षक जसवीर पातू की हत्या केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि हमारे समाज की संवादहीनता, विफल शिक्षा व्यवस्था और गिरते नैतिक मूल्यों का कठोर प्रमाण है। आज का किशोर मोबाइल की आभासी दुनिया में जी रहा है, जबकि घर और विद्यालय दोनों में उपेक्षित है। मानसिक […]

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धर्मांतरण का धंधा: विदेशी फंडिंग और सामाजिक विघटन का षड्यंत्र

डॉ सत्यवान सौरभ उत्तर प्रदेश में एटीएस ने एक बड़े धर्मांतरण रैकेट का खुलासा किया है, जिसमें विदेशी फंडिंग के जरिए करीब 100 करोड़ रुपये 40 खातों में भेजे गए। मुख्य आरोपी ‘छांगरू बाबा’ उर्फ जमशेदुद्दीन के नेतृत्व में यह गिरोह ऊंची जाति की लड़कियों के लिए 15-16 लाख रुपये की दर से धर्मांतरण कराता […]

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रील की दुनिया में रियल ज़िंदगी का विघटन, दिखावे की दौड़ में थकती ज़िंदगी

सोशल मीडिया: नया नशा, टूटते रिश्ते और बढ़ता मानसिक तनाव प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार आज का समाज एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ है जहाँ एक तरफ़ तकनीकी प्रगति ने जीवन को सहज और तेज़ बना दिया है, वहीं दूसरी ओर यही तकनीक धीरे-धीरे सामाजिक ताने-बाने को चुपचाप खोखला कर रही […]

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“कुकुरमुत्तों की तरह उगते कोचिंग सेंटर: CET या लूट की नई राह?”

“CET के नाम पर कोचिंग माफिया: हरियाणा में शिक्षा का बढ़ता सौदा” “CET का चक्रव्यूह और कोचिंग का जाल डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा में CET परीक्षा लागू होने के बाद जिस रफ्तार से कोचिंग सेंटर गली–गली उग आए हैं, वह न केवल शिक्षा के व्यवसायीकरण का प्रमाण है, बल्कि बेरोजगार युवाओं की मजबूरी का क्रूर […]

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महिला आरक्षण की दहलीज़ पर लोकतंत्र: अब दलों को जिम्मेदारी उठानी होगी

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार 2023 में पारित नारी शक्ति वंदन अधिनियम भारत में राजनीति के स्वरूप को बदलने का ऐतिहासिक अवसर है। हालांकि इसका क्रियान्वयन 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले संभव है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब राजनीतिक दल अभी से महिलाओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाएँ। केवल आरक्षित सीटें […]

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देश की एकता-अखंडता में घुलता जातीय संघर्ष का जहर..!

भारत की आत्मा उसकी सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता में रही है, लेकिन आज यह विविधता विघटन की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। जातीय संघर्ष अब न तो असामान्य रह गया है और न ही सीमित। आए दिन किसी न किसी हिस्से से झड़प, नारेबाज़ी, बहिष्कार, आगज़नी और हिंसक प्रदर्शन की खबरें आ रही […]

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जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती?

डॉo सत्यवान सौरभ,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट भारत दुनिया की 18% आबादी और मात्र 4% ताजे जल संसाधनों के साथ गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, असंतुलित खेती, और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद कार्यान्वयन और जनभागीदारी की […]

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अंतरिक्ष की नई उड़ान: एक्सिओम-4 और भारत की वैश्विक पहचान

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार एक्सिओम-4 मिशन भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल की सहभागिता से यह मिशन सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति का प्रतीक बन गया है। अमेरिका की एक्सिओम-4 स्पेस और नासा के सहयोग से हुआ […]

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“कॉलर ट्यून की विदाई: जनता की सुनवाई या थकान की जीत?”

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार 6 दिन पहले प्रकाशित हुआ मेरा लेख — “कॉलर ट्यून या कलेजे पर हथौड़ा: हर बार अमिताभ क्यों? जब चेतावनी बन गई चिढ़” अमिताभ बच्चन की कोविड कॉलर ट्यून ने देश को जागरूक किया, पर समय के साथ वह झुंझलाहट में बदल गई। जनभावनाओं की अनदेखी नीतियों के […]

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