रंगमंच पर जाति का खेल: मनोरंजन के नाम पर मानसिकता का निर्माण कितना जायज़?
प्रियंका सौरभ कला का काम समाज को जागरूक करना है, उसकी विविधताओं को सम्मान देना है, और उस आईने की तरह बनना है जिसमें हर वर्ग खुद को देख सके। लेकिन जब कला सिर्फ कुछ खास वर्गों या समूहों की महिमा गाने लगे, और बाकी समाज की पीड़ा, संघर्ष और उपस्थिति को नज़रअंदाज़ कर दे, […]
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