डॉ नरेंद्र मल्होत्रा: ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ नारा के प्रवर्तक, अब कहते हैं, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ बेटा समझाओ’, पढ़िए रोमांचक परिचय

“प्रकाशपुंज डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा: एक जीवन, अनगिनत प्रेरणाएँ” डॉ. भानु प्रताप सिंह (NM@2AM के लेखक) परिचय का सौभाग्य आज मैं जिस महापुरुष का परिचय देने के लिए यहाँ खड़ा हूँ, वह कार्य मेरे लिए केवल सौभाग्य नहीं बल्कि जीवन का गर्व भी है। किसी शायर ने कहा है— “ज़िंदगी जि़स्त नहीं, ज़िम्मेदारी है, जो इसे […]

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साहसिक निर्णय और अद्भुत नेतृत्व – मोदी जी के 75 वर्ष

माना अंधेरा घना है लेकिन दिया जलाना कहाँ मना है…आज हम देश के प्रधानमंत्री, देश ही नहीं विश्व के गौरवशाली नेतृत्व का जन्मदिन मना रहे है। 2012 में बैंक ऑफ इंडिया के जोनल मैनेजर श्री सिंगला मुझसे मिलने आए, बातचीत में मैंने पूछा इससे पहले आप कहाँ थे, उन्होंने बताया अभी लुधियाना से आया हूँ, […]

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जनरेशन-जी से लेकर जनरेशन अल्फा तक: समय के साथ बदलती पीढ़ियाँ और उनका समाज पर असर

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार समय और समाज के बदलते माहौल के साथ हर पीढ़ी की सोच, जीवनशैली और चुनौतियाँ बदलती हैं। ग्रेटेस्ट जनरेशन और साइलेंट जनरेशन ने युद्ध और कठिनाई का सामना किया। बेबी बूमर्स ने औद्योगिकीकरण देखा, जेन-एक्स ने तकनीकी शुरुआत अनुभव की, और मिलेनियल्स ने इंटरनेट और वैश्वीकरण के साथ […]

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शिक्षक सम्मान: सच्चे समर्पण की पहचान और पारदर्शिता की आवश्यकता

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार सच्चे पुरस्कार का मूल्य उस कार्य में निहित है, जो किसी व्यक्ति ने समाज और समुदाय के लिए किया है। पुरस्कार का असली उद्देश्य किसी की व्यक्तिगत पहचान या नौकरी बढ़ाने के लिए नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, यह उन लोगों को सम्मानित करना चाहिए, जो समाज में […]

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भारतीय रणनीति और पड़ोसी देशों की उथल-पुथल, दक्षिण एशिया की अस्थिरता और भारत की चुनौतियाँ

डॉ सत्यवान सौरभ दक्षिण एशिया इस समय राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव में हालिया घटनाओं ने भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर सीधा प्रभाव डाला है। चीन और अमेरिका अपनी-अपनी टूलकिट के जरिए क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं। भारत के लिए केवल प्रतिक्रियात्मक नीति पर्याप्त नहीं है; […]

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वामपंथी सोच और भारतीय संस्कृति: समृद्धि या विकृति?

डॉ सत्यवान सौरभ भारत, एक ऐसा देश जहां संस्कृति, धर्म, कला, और साहित्य की जड़ें सदियों से फैली हुई हैं, आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह देश विविधताओं में एकता का प्रतीक है, और इसकी सांस्कृतिक धरोहर विश्वभर में प्रशंसा पाती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, वामपंथी विचारधारा ने भारतीय समाज के […]

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हिंदी दिवस का संदेश: भाषा से जुड़ता है समाज और संस्कृति, मातृभाषा में शिक्षा ही वास्तविक राष्ट्रनिर्माण का मार्ग

डॉ सत्यवान सौरभ मातृभाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि हमारी पहचान और संस्कृति से जुड़ाव का माध्यम है। नई शिक्षा नीति (2020) ने कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा पर बल दिया है, जिससे बच्चों की समझ, आत्मविश्वास और भागीदारी बढ़ेगी। अंग्रेज़ी का महत्व अपनी जगह है, परंतु प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही सबसे […]

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हिंदी दिवस: एक दिवस में क्यों बंधे, हिन्दी का अभियान। रचे बसे हर पल रहे, हिन्दी हिन्दुस्तान

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार हिंदी दिवस केवल एक औपचारिक उत्सव न रह जाए, बल्कि यह हमारी चेतना और जीवन का स्थायी हिस्सा बने। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आत्मगौरव की पहचान है। यदि हम अपने घर, शिक्षा, तकनीक और कार्यस्थल पर हिंदी को सहजता से अपनाएँ, तभी […]

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सोशल मीडिया: एक अदृश्य बारूद का ढेर, जिस पर बैठी है हमारी युवा पीढ़ी!

आगरा: नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोमवार को जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक पड़ोसी देश की आंतरिक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसी चेतावनी है, जिसकी गूंज हमारे घरों और हमारे समाज तक पहुंच रही है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के विरोध में सड़कों पर उतरे युवाओं और बच्चों पर हुई पुलिस कार्रवाई में […]

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भारतीय शिक्षा और एआई: मुक्तिदायी या बंधनकारी

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारतीय शिक्षा के सामने दो राहें खोलती है। एक ओर यह शिक्षक को कागज़ी काम और दोहरावदार कार्यों से मुक्त कर सकती है, जिससे वह संवाद और मार्गदर्शन पर ध्यान दे सके। दूसरी ओर यह खतरा भी है कि शिक्षक महज़ “तकनीकी-प्रबंधक” बन जाए और शिक्षा […]

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