यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता! (भाग – 2) ठाकुर दलीप सिंघ जी

यदि विचार किया जाए: तो आज भी विश्व के सब से बड़े भाग को गुलाम बना कर, उस पर इंग्लैंड, अमरीका आदि के अंग्रेज़ी-भाषी लोग ही शासन कर रहे हैं। इस का कारण केवल वही है, जिस का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ : ‘इंग्लैंड का विश्व के लोगों को गुलाम बना कर, वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित […]

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व्हाट्सएप बैन और डिजिटल गुलामी: क्या हम टेक कंपनियों के बंधुआ मज़दूर बनते जा रहे हैं?

डॉ सत्यवान सौरभ Jio ने हमें सस्ते डेटा का स्वाद चखाया और फिर उसकी लत लगाकर हमारी जेबें ढीली कर दीं। आज WhatsApp उसी रास्ते पर है — “पहले फ्री दो, फिर गुलाम बनाओ, फिर लूटो”। यह समय है कि हम सिर्फ यूज़र नहीं, डिजिटल नागरिक बनें — जागरूक, संगठित और अधिकारों के लिए लड़ने […]

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विकसित भारत लक्ष्य- 2047: भगवान बुद्ध के योग, तप, चरित्र और दर्शन से संभव अखंड व भारत का निर्माण

मानव इतिहास में कुछ महान व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जिनका प्रभाव न केवल अपने समय और भूभाग तक सीमित रहता है, बल्कि वह युगों-युगों तक मानवता के लिए पथप्रदर्शक बन जाते हैं। तथागत भगवान गौतम बुद्ध एक ऐसे ही महामानव थे, जिनका जीवन, चरित्र, योग, तप और दर्शन का समन्वय मानवता के उद्धार का मार्ग […]

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बड़वा गांव की हवेलियों में इतिहास की गूंज: ठाकुरों की गढ़ी से केसर तालाब तक

दक्षिण-पश्चिम हरियाणा की रेतीली धरती पर, जहां धूप की तल्खी रेत के कणों को भी तपाने में सक्षम होती है, वहीं बसा है बड़वा — एक गांव जो आज भी अपने अतीत की स्मृतियों को हवेलियों की दीवारों, तालाबों की गहराई, और चित्रों की रंगरेखा में संजोए हुए है। यह गांव भिवानी जिले में, हिसार […]

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यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता!

नई दिल्ली, मई 23: आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता; तो भारतीय भाषाएं कितनी समृद्ध होती! जिस तरह आज ‘इंग्लिश’ विश्व पर शासन कर रही है, उसी तरह ही भारतीय भाषाएं भी विश्व पर शासन करती। आज विश्व में अंग्रेज़ी की बजाय […]

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सच बोले स्क्रीन वाला: इन्फ्लुएंसर, जागो! जिम्मेदारी भी कभी वायरल करो….

आज सोशल मीडिया पर मौजूद इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव समाज और राजनीति पर तेजी से बढ़ रहा है। वे बिना किसी जवाबदेही के जनमत को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से चुनावों में। पारंपरिक मीडिया के विपरीत, इनके लिए कोई स्पष्ट आचार संहिता नहीं है। ऐसे में लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बनाए रखने के […]

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लाभार्थी कौन?…आरक्षण: पीढ़ीगत विशेषाधिकार या वास्तविक न्याय?

डॉ सत्यवान सौरभ आरक्षण भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने और वंचित समुदायों को मुख्यधारा में लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन समय के साथ यह एक पीढ़ीगत विशेषाधिकार बनता जा रहा है, जिससे वास्तविक जरूरतमंद वंचित रह जाते हैं। आर्थिक आधार और समय-समय पर समीक्षा की अनिवार्यता इस व्यवस्था […]

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गद्दारी का जाल: देश की सुरक्षा पर मंडराता खतरा

डॉ सत्यवान सौरभ भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद NIA ने देशभर में 25 ISI एजेंटों को गिरफ्तार किया है, जो देश की सुरक्षा पर मंडराते खतरे की गंभीरता को उजागर करता है। कैथल से देवेंद्र सिंह, हिसार से ज्योति मल्होत्रा, दिल्ली से जमशेद और कैराना से नोमान इलाही जैसे लोगों ने गद्दारी […]

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दहेज का विरोध, पर मालदार दूल्हे की चाहत क्यों?…यह दोहरी सोच ही हमारे समाज का असली चेहरा

दहेज़ लेने वालो के मुंह पे थूकने से फुर्सत मिल गई हो तो थोड़ा एकलौता मालदार लड़का ढूंढने वालो के मुंह पे भी थूक दो। यह दोहरी सोच ही हमारे समाज का असली चेहरा है, डॉ सत्यवान सौरभ जहां दहेज का विरोध सिर्फ भाषणों तक सीमित है, पर बेटियों की शादी में बड़ा बैंक बैलेंस […]

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काबिलियत और अंक: दोनों में समझें फर्क, अंक नहीं हैं असल काबिलियत की पहचान…

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार अंक केवल एक व्यक्ति की किताबी जानकारी का प्रमाण होते हैं, न कि उसकी असल क्षमता का। असली काबिलियत जीवन की समस्याओं को हल करने, नई चीजें सीखने और परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता में होती है। हमें बच्चों को केवल अंकों की दौड़ में […]

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