परिवार दिवस विशेष: फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार

डॉ सत्यवान सौरभ भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है. कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया है. पत्थर होते हर आंगन में फ़ूट-कलह का नंगा नाच हो रहा है. आपसी मतभेदों ने गहरे मन भेद कर दिए … Continue reading परिवार दिवस विशेष: फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार